आज बहुत दिनो के बाद हृदय को छूने वाली फिल्म देखने को मिली जिसका नाम है द केरला स्टोरी।इसकी पटकथा ने मुझे अंदर से झकझोर दिया।ये क्या हो रहा है मेरे देश में? हम कहां जा रहे हैं? हमसे क्या चूक हो रही है? हमे किस विषय पर ध्यान देना चाहिए? इन सवालों से ही दो दिन मन उलझा रहा,फिर मैने अपने आसपास के लोगो लोगों से विचार विमर्श किया।तर्क वितर्क भी हुए।फिर कहीं जाकर इन उलझनों को एक सुलझा पथ मिला इस सुगम राह का नाम है - धर्म की शिक्षा।
मेरा ऐसा मानना है कि ये जो धर्म के प्रति भड़काया जा रहा है और धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है उसमें कहीं न कहीं गलती हमारी परवरिश की है।आरंभ से बच्चों को a b c d, hello or good morning जैसे संस्कार दे रहे है।जय राम जय कृष्ण, हरी ओम बोलने में तो दिक्कत होती है। मां मॉम और पिता डैड तो पहले ही बन चुके हैं बचपन से ही जब दिल में राम बसाया जाएगा तो क्यों कोई हाय बाय तक सीमित रहेगा।
हम बच्चों को तुम्हे क्या करना है कैसे करना है इसका पाठ बचपन से पढ़ाते हैं।वो काफी हद तक सही भी है पर हम असली पाठ पढ़ाना भूल गए हैं। हमे ये जिंदगी क्यूं मिली है हमारा असली उद्देश्य क्या है इनका पाठ पढ़ाना अति आवश्यक है।
इंसान को जिंदगी मिलती है भजन कर मोक्ष पाने के लिए।
मगर इंसान खो देता है अपनी जिंदगी को चौरासी लाख योनियों में भटकने के लिए।
हमे उन्हे अपने शास्त्रों और धर्म का ज्ञान ही नही दे रहे है।विद्यालय की शिक्षा के साथ साथ आध्यात्मिक अध्ययन का भी होना जरूरी है।बल्कि मै तो ये कहूंगी ये हमारी पहली प्राथमिकता है। आध्यात्मिक ज्ञान के प्रति जागरुकता बेहद जरूरी है।
इसके लिए तो सबसे पहले हमे जागरूक होना है अपने धर्मो के प्रति । बच्चों को हर छोटे बड़े त्यौहारों रीति रिवाजों से अवगत करवाया जाए।मुझे तो लगता है गुरुकुल की शिक्षा अनिवार्य कर देना चाहिए।जहां वेद उपनिषद,ध्यान,सिमरन,योग की शिक्षा दी जाए।
ऐसा हो वहां ज्ञान जहां बच्चे ना हो भ्रमित
विवेक से काम ले, जीवन जिए संयमित
धैर्य को अपनाए,मार्ग से ना हो विचलित
क्रोध को वश में रखे, सदैव रहे आनंदित।
और ये तभी संभव है जब हम आध्यात्मिक अध्ययन की ओर अग्रसर होंगे।हम स्वयं उनके लिए मिसाल बने ऐसा कुछ काम करें।उन्हे बचपन से ही शुकराना करना सिखाए जो मिला है और जो मिल रहा है वो ईश्वर का उपहार है।उनके विश्वास को प्रगाढ़ करें ।पर इस बात का भी ध्यान जरूर रखें कि ये विश्वास अंधविश्वास मे न बदल जाए।फलां बाबा ने ये चमत्कार किया तो वहां चल दिए फिर कल कहीं दूसरे चमत्कारी बाबा के पास। उन्हे कर्म का पाठ पढ़ाएं।क्योंकि ये जीवन कर्मो का खेल है।
मैं तो ये चाहूंगी कक्षा पहली से बारहवीं तक गीता के अठारह अध्यायों का अध्यन करना चाहिएबच। बच्चों को एक बार भगवद गीता समझ जाएगा तो जीवन का सार समझ में आ जाएगा।फिर वो दिग्भ्रमित होकर इधर उधर ना भटकेंगे और ना ही किसी के बहकावे मे आकर अपना धर्म परिवर्तन करेंगे।
मैं किसी धर्म के खिलाफ नही हूं।सबका अपना अपना अलग महत्व है।सभी धर्मों के प्रति आदर भावना रखते हुए आगे बढ़ना है।किसी के प्रति द्वेष नहीं रखना है।
रोज रोज ये सुनकर आध्यात्मिक ज्ञान
युवा वर्ग निर्माण करेगा एक नव हिंदुस्तान।
दिग्भ्रमित होकर न होगा भटकाव
मातृ पितृ और धर्म से न होगा अलगाव।
जीवन जीने की प्रवृति को बदलकर
अपने धर्मो को रख पाएंगे सहजकर।
ना हमे घर व्यापार छोड़ना है
ना हमे जंगलों में निवास करना है
आध्यात्मिक ज्ञान को विज्ञान के साथ जोड़ना है।
दोनो मे सामंजस्य स्थापित करना है
धर्म पर विजय का परचम लहराना है
नवीन पीढ़ी का रुझान इस और मोड़ना है।
आओ सब मिल कर संकल्प करें
अधर्म के ठेकेदारों का नाश करें
नास्तिक को आस्तिक बनाने का प्रयास करें।।