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मानस पटल पर जो छाई कमजोरी की धुंध
अब उसे हट जाने दो।
सुकोमल धरती को एक सुदृढ़ भूमि बना
अब उसमे हल जोतने दो।
नई अवधारणाओं की इक नई फसल
अब लहराने दो।
चार दीवारों की बेड़ियों से मुक्त कर
अब एक स्वतंत्र आकाश में उड़ने दो।
पग पग पर अंधियारा दूर कर, किया उजियारा
अब उसके पथ को रोशनी से भर दो।
जीवन की बगिया को संवारा माली बनकर
अब उसकी गलियों में फूल खिलने दो।
अर्धांगनी बन साथ निभाया हर समय पर
अब उसे अवसर देकर उसका वक्त बदल दो।
कुलकर्णी उस गृहशोभिनी को आत्मनिर्भर बन
अपनी एक अलग पहचान बनाने दो।।