हर युग की त्रासदी हर युग का किस्सा
अनवरत जारी है शोषण और यौन हिंसा।
प्राचीन काल से ही हो रहा है नारी उत्पीड़न
पूर्व में ना होती थी इसकी व्याख्या ना वर्णन।
कलयुग में तो अस्मिता सड़क पर उतरी पड़ी है
ज्वलित हृदय लिए पीड़िता इंसाफ के लिए खड़ी है।
ये कैसी विडंबना है ये कैसी व्यवस्था है
ना कोई सुनवाई है ना सुनता कोई व्यथा है।
बड़े जोश से आरंभ होता है आंदोलन
पर मिलता क्या है केवल आश्वासन।
बिना कार्यवाही के तत्काल मे दरिंदों को फांसी की सजा दी जाए
शायद इससे यौन हिंसा में थोड़ी कमी आ जाए।
यौन शिक्षा को अनिवार्य कर दे प्रशासन
शायद फिर ना कोई बन पाए दुशासन।।।