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उम्र का बढ़ना तो लाजमी है अगर हम इसे सहज स्वीकार करें तो उम्र बढ़ती कहां है ।यह जीवन का वह पड़ाव है जहां इंसान शांति और सुकून के साथ अपनी जिंदगी बिताना चाहता है। लेकिन वह अपनी नकारात्मक सोच के कारण अपनी चाहत को मुकम्मल नहीं कर पाता है। बहुत से लोग बुढ़ापे को बोझ और बीमारियों से भरी उम्र मानते हैं। वह इस सोच को बदलकर इस पड़ाव को एक खुशनुमा शाम बन सकते हैं।
सकारात्मक सोच और रचनात्मक दृष्टिकोण से अपने जीवन की बगिया को प्रेम रूपी झरने से सींचते हुए खिल खिलाते हुए जीवन व्यतीत कर सकते हैं। मैं अपनी इन पंक्तियों के द्वारा बुर्जुग वर्ग को जागृत करना चाहती हूं।
जिंदगी की ढलती शाम बन जाए खुशनुमा तराना
करो कुछ ऐसा काज सफर हो जाए सुहाना।
नई चुनौतियां स्वीकार कर बना कोई अफसाना
अधूरी ख्वाहिश पूर्ण कर चाहे जो भी कहे जमाना।
बालों में सफेदी से हृदय में क्यों पनपे हीन भावना
हौसलों को बुलंद रख अभी भी है संभावना।
स्वयं को व्यस्त कर तुम्हारे पास है अनुभव का खजाना
जुनून की चिंगारी सुलगा कर रुख बदल दे तू अपना।
निर्बल ना समझ विश्वास रख दूसरों के आगे काहे दबना
आशाओं का उजाला रख चिंता की चिता जलाना
वेदनाओं की अग्नि को बुझा खुशी के दीप को प्रचलित करना।