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मां मेरी गलती क्या थी
हाथ पकड़ने से रोका ही तो था
मां मेरी गलती क्या थी
दुपट्टे से खुद को ढका भी तो था
लिहाज का वही दुपट्टा
मेरे गले का फंदा बन गया
बोलो ना मां मेरी गलती क्या थी
कुछ तो लिहाज करो, नजरें झुका के चलो
यही सिखाया था ना तूने मुझे
फिर मां मेरी गलती क्या थी
अभी तो उठ कर खड़ी हुई थी
चलना भी ना सीखा था
रीढ़ तोड़ दी उसने मेरी जिसने जबरन बाहों में भींचा था
छोड़ दो मुझको जाने दो , भैया कहकर चिल्लाई थी
हाथ जोड़े पांव पकड़े मैं भी तो गिड़गिड़ाई थी
खींच के मेरी चुनरी को हवा में ऐसे उड़ा दिया
जैसे मेरी आबरू पर उसने तेज़ाब गिरा दिया ,
आंखों में मेरे आंसू थे और जुबां पर न जाने किस गलती की माफ़ी थी ,
जुबां भी उसने काट दी मेरी जाने हैवानियत कहां से जागी थी
तेरी कोयल सी बिटिया की मां अब सुर कभी न बाजेगी
आंगन भी अब सुना हो गया तेरी बिटिया कभी ना नाचेगी
घुंघरू उसके टूट गए हैं और जुबां पे ताला है
अब बस इक तस्वीर बची है जिस पे चंदन की माला है ।