रक्षाबंधन : रक्षा बंधन का पर्व, पूरे भारत में मनाया जाता है. यह एक पवित्र पर्व भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है. इस पर्व को बहनें वर्ष भर इंतजार करती हैं. आज के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी या रक्षा सूत्र बांधती हैं. इस दिन बहने भाई की लंबी आयु, सफलता और समृद्धि की कामना करती हैं. वहीं रक्षा बंधन पर भाई, बहनों की रक्षा और सम्मान बनाए रखने का और सुरक्षित रखने का प्रण लेते हैं.

विक्रम संवत् के अनुसार रक्षा बंधन का पवित्र पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है.

शुभ मुहूर्त में सर्वप्रथम भगवान शिव की पूजा करें क्योंकि वे रक्षा एवं विनाश के ईश्वर माने गए हैं तत्पश्चात् गायत्री और अपने इष्टदेव के मंत्र का जाप करें. पितरों का स्मरण करें. नवग्रहों की पूजा करें. इसके बाद भाई की कलाई पर इस मंत्र के साथ राखी या रक्षा सूत्र बांधना चाहिए-

येन बद्धो बलि: राजा दानवेंद्रो महाबल:.
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल.

इस मंत्र में राजा बलि का भी नाम आता है और इसका किंवदंती इस तरह है….

राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे परंतु उनके गुरू राक्षसों के गुरू शुक्राचार्य की प्रवृत्ति भगवान विष्णु से हमेशा के लिये अपमानजनक थी।एक बार बली ने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। शुक्राचार्य पहचान गये थे कि भगवान विष्णु वामन के रूप में आये थे और वे राजा बलि को सचेत करते रहे परंतु बलि नहीं माने और कहा कि यज्ञ के साथ दान देना सनातन धर्म की पद्धति है और वह उस से नहीं हटेंगे…।लेकिन वामन से जैसे बलि ने कहा कि ब्रह्माण जो माँगना है माँग लो सो वामन ने तीन पग भूमि माँग लिया..।

दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की, कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।

महाभारत में भी दो कहानी संग्रह मिलता है एक जिसमें द्रौपदी श्री कृष्ण के उँगली कटने पर अपने आँचल को फाड़ कर श्री कृष्ण के उँगली को बाँधतीं है और दूसरी जब युद्धीस्टिर कृष्ण से पूछतें है कि युद्ध में विजय कैसे होगा तो भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि प्रत्येक सिपाही को रक्षासूत्र बांध दें यह सभी घटनाओं का दिन सावन माह की पूर्णिमा थीं…!!

इस भाई-बहन के पवित्र रक्षा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ आप सभी को….!!

श्री हरि विष्णु पथ प्रदर्शक बने रहें और उनकी कृपा हमेशा प्राप्त होता रहे….

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