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आज फिर बचपन में वापिस जाने को दिल चाहता है।
आज फिर एक नई आस लगाने को दिल चाहता हैं।
आज फिर से बचपन की तरह खुल के हँसने को दिल चाहता है।
घर नही महल था हमारा,जिसमे हम सब भाई बहन का मेला था।
हर मौसम हमने साथ बिताया है। हर त्योंहार को हमने मिल बाट के मनाया है।
बचपन मे शरारते भी बहुत की है, तो माँ की डांट भी खाई है, फिर उसके बाद माँ ने ही तो गोद मे बिठा कर लोरी भी सुनाई है।
बचपन मे आसमान के नीचे बैठ कर तारे गिनने की होड़ लगाई थी आज उसी आसमान को छू दिखाने की जींद जताई है।
हमने छत पर होली भी खूब मनाई है
दीवाली पर महल के चौक पर रंगोलियां भी खूब सजाई हैै।
साईकिल के तो सब दीवाने थे,एक ने छोड़ तो दूसरे नें चलाई है।
हमें न किसी की हार से न किसी की जीत से कुछ लेना था हमारा तो अपनी ही बातों का मेला था।
बचपन मे मेले के भी खूब मजे उठाये है।
मेले से सबने बुढ़िया के बाल भी खाए है।
एक पीटा तो दूसरे ने बिन बात के मार खाई है।ऐसे ही हमने बचपन मे दोसती निभाई है।
गुरुद्वारे का हलवा भी सबने खाया है।
वाहेगुरु का जन्मदिन भी सबने साथ मनाया है।
बचपन मे लड़ते थे फिर भी साथ थे।
आज लड़ते नही हैं, फिर भी साथ नही है।
ये सब वक़्त का खेल हैं,जिसने खूबसूरत सी जिंदगी को आज अपना ही घेरा बनाया है।
बचपन का वक़्त भी कितना अच्छा था ना कोई फिक्र थी ना कोई झमेला था दिल में तो सिर्फ खुशियो का घेरा था।
हर बच्चे को देख कर वही अपना बचपन याद आता हैं।
आज फिर वापिस बचपन मे लौट जाने को दिल चाहता है।
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