के पांडवो को तुम चुनो मै कौरवों के साथ में
समय रेखा की बीच में जो हारता ना रणभूमि में
अभाग्य कुंती माता थी जिसने
पुत्र को बहाया था हा वो कर्ण था, वो कर्ण था
जिसने दान करके सबकुछ, अपना सर्वश्रेष्ठ नाम कमाया था
सूतपुत कहते लोग सच से वो अनजान थे
सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर को अछूत कैसे मानते
के कहने को मै कर्ण सर्वश्रेष्ठ था,
पर गुरु द्रोण को पालन धर्मो का करना था कहकर अर्जुन श्रेष्ठ है
सूतपुत को पीछे करना था
माना दुर्योधन ने किया अधर्म था पर मेरा मित्र प्रेम सर्वश्रेष्ठ था
ये सूर्यपुत्र कर्ण उसकी ढाल बनके रणभूमि में खड़ा था
मुझे ज्ञात था वेर्थ है प्रयास मेरा मित्र था वो कुछ खास मेरा
अभ्येद मेरा अंग था मैं कर्ण खामखा बदनाम था
यही था गुन्हा मेरा हा मै सूतपुत था तुमने किए धर्म सारे
क्या मैने किया अधर्म था है नंदलाल क्या मैने किया अधर्म था
के एक और था ज्ञानी भाई मेरा नाम जिसका शोन था
जो वेदों का पठन करता था
देख श्रोण को पिघलाके उसके कंठ में उतारा था
देख अर्जुन के पीछे खड़े नंदलाल अंजनिए थे
नियति का खेल देख जो दोनो वंदनीय थे
दानवीर तो मै पहले से था सूर्यपुत्र कहलाना अभी बाकी था
बाणों से फटता शरीर देख शत्रु भी नतमस्तक होता था
कहा वासुकी ने मै बैठता तेरे बाण पर तू चला तीर
देख कैसे समाप्त करता हूं अर्जुन के प्राणों को
कहा मैने कालसर्प से यू कायरो के भाती
लढना मुझको स्वीकार नही स्वीकार है हार अपनी
जा मुझे, तुझे अपने बाण पर बिठाना स्वीकार नही
मै केवल इंसान हु कोई विधाता नही
मै कर्ण वचनों से बंधा था मैंने दिया वचन कुंती माता को
नही तो पांडवो के रक्त से मैं भरता अपने हातो को
ऐसा कोई माय का लाल नही जो अपनी छावनी मै जा सके
ऐसा सामर्थ्य किसके पास है जो कर्ण हरा सके
ऐसा साहस किसके पास है जो कर्ण को हरा सके
कर्म से धुतकारा गया मैं अपने ही भाईयो से मारा गया
ना मिला प्रेम कुंती माता का ना मिला सहारा अपने भ्राता का
ना मिल सका अच्छा गुरु मुझे ना मिल सका साथ कृष्ण का
कुरुक्षेत्र की उस मिट्टी में मेरा भी लहू जीर्ण हुआ
अब कर्ण का यही समय समाप्त हुआ
पर याद रखेगी दुनिया मुझको मेरे नाम से मेरे काम से मेरे कर्म से
याद रखेगी दुनिया सारी इस कर्ण को दानवीर के नाम से