हँसता मुस्कुराता चेहरा और खुले बालों की पहेली थी।
मेरे पापा के साथ में उस दिन रतलाम घूमने निकली थी।
नाश्ता पानी सेल सपाटा और कुछ समय चिकित्सा में काट लिया था।
रिपोर्टस जब आई तो दोनों ने अपना दर्द मन ही मन बांट लिया था।
आंखों में दरिया मेरे तो पापा के ह्रदय में समुंद्र की हिलोरे थी
और खुद कमजोर ना हो जाए। इसलिए मुझे हिम्मत वाली बुलाया था।
ऐसा कहते हुए पापा ने मेरे सर पर हाथ घुमाया था।
घबराया हुआ परिवार और पापा के चेहरे पर चिंता की लकीरें थी।
बस उसी दिन से शुरू हमारी अस्पताल की हेरा फेरी थी।
उस दिन मैंने दुनिया में सब कुछ जान लिया था।
मां पापा को मैंने अपना सर्वस्व मान लिया था।
मां पापा के सिवा कोई आगे नहीं आया था।
गुरु नाम ने मेरा हाथ राम जी के हाथ में थमाया था।
सबके दिल पर उम्मीदें की डोरे थी
क्योंकि रिपोर्टस मेरी अभी भी पहेली थी ।
बड़ी-बड़ी मशीनों के चक्कर लगा रही थी।
पहली दफा था इसलिए थोड़ा में भी घबरा रही थी और 6 दिनों में सारे नतीजे आ गए थे।
नतीजों ने उम्मीदों पर ताले मार दिए थे।
मुरझाए हुए चेहरे पर भी आशा का बोलबाला था और पापा के सामने मैंने उस दिन भी मुस्कुरा कर बताया था।
और अश्कों से आंखें तो मेरी अब भी भरी हुई थी। और भाई के गले लग कर मैं फूट-फूट के रोई थी।
दर्द में वक्त मेरे काटे नहीं कट रहा था।
हर दिन मुझे 24 घंटे से कुछ ज्यादा ही लग रहा था
दर्द में कदमों ने गुजरात छू लिया था।
2 महीनों के इलाज के बाद भी हाल मेरा पहले से भी बुरा था ।
और आंखों में समंदर तो पापा भी लिये हुवे थे।
मम्मा ने भी मुझ से पहली दफा झूठ बोला था।
आंखों में धूल चली गई, यह कहकर मेरे सामने रोया था।
दर्द में ,मैं उन दिनों ऐसे मचल रही थी।
बिना पानी मछली तड़पे ऐसे तड़प रही थी।
पापा को हाल मेरा देखा नहीं जा रहा था।
पापा ने फिर दवाखाना ही बदल डाला था।
मां ने मेरा हाल रो-रो रामजी को सुनाया था।
पापा ने तो उस दिन भी आंसू छुपाने का हुनर निभाया था।
दो-तीन तरह की सब्जियों की फरमाइश जो मेरे पापा घर पर किया करते थे।
वो वहा मिर्ची से रोटी खाकर भी मुझे कुछ नहीं कहते थे।
अपने ही घर में मेहमान बन कर रह गई थी।
अपने ही शहर में रहने को मैं दिन-रात तरसती थी।सूरज को तो तस्वीर में देखना होता था।
अंधेरा अंधेरा सा लगता पर उजाला कहना होता था। दोस्तों से बातें कर मन को थोड़ा समझा लिया करती थी।
उनके स्टुपिड से जोक से मैं भी कभी हंस लिया करती थी।
सवेरा मेरा इंजेक्शन के दर्द से होता था।
थोड़ा सा रोती, क्योंकि यह तो हर रोज का झमेला था।
इतना होते हुए भी मैं मुस्कुराना चाहती थी।
दास्तां को अपने बिखेरना चाहती थी।
आंसू और दर्द सब कुछ लिख दिया करती थी
जो किसी को ना कहती वह कलम के सामने उगल दिया करती थी।
खत नहीं दवाइयों की पर्चे पढ़ा करती थी।
मोहब्बत नहीं की थी इसलिए दर्द लिखा करती थी।
खाना पानी अब मेरा कहां हो पाता था।
भूख नहीं है मुझे ,मेरे पास सिर्फ एक ही बहाना था। शरीर मेरा लकड़ी की तरह सुखा जा रहा था।
खून कम पड़ गया, यह भी तो एक इशारा था।
खून का रिश्ता नहीं एक अजनबी काम आया था। उस दिन एक अनजान ने खून देकर मानवता को निभाया था।
एक-एक करके सब कुछ बिखरा जा रहा था।
मेरे बालों पर भी तो इसी बीमारी ने हमला मारा था। eyebrows और eyelids सब
कुछ खिरती जा रही थी ।
मैं एक-एक करके अपने बालों को बिनती जा रही थी।
पापा के दोस्तों ने भी क्या फर्ज निभाया था।
कई रातों जागकर मुझे रेलवे स्टेशन से घर पहुंचाया था।
दोस्ती किसे कहते हैं ,मैं जान गई थी।
पापा के मित्र फरिश्ते हैं,ऐसा पहचान गई थी।
अब कीमोथेरेपी के दरमियान सर्जरी का नंबर आया था।
दिल में डर सा पर आंखों पर कहां उजाला था।
दर्द को रोया और शर्म को खो दिया था ।
OT में साइलेंट पर दिल में बड़ा शोर हुआ था।
सर्जरी ने सवेरे से सांझ कर डाला था।
मां पापा ने उस दिन में मुह में अन्न का दाना नि डाला था।
होश आया तो राम नाम पुकारा था।
रो-रोकर पूरी रात को तारा था।
अब चलना फिरना मेरा कहां हो पाता था।
कहां जाने के लिए स्ट्रेचर का सहारा था।
मां मेरे साथ तो छोटी ने घर संभाला था।
थी छोटी पर बड़ी बहन वाला काम करके बताया था।
मोदी जी और भूमि बहन जैसी बड़ी-बड़ी हस्तियां धरी पड़ी है।
दुनिया में अब भी इंसानियत भरी पड़ी है।
मोदी जी के साथ-साथ भूमि बेन ने भी मदद का हाथ बढ़ाया था।
बच्चे भी कुछ बड़ा कर सकते इस मिशन को मेरे लिए लगाया था
पापा मुझे गोदी में उठा उठा कर घूमते थे ।
और भाई के लिए तो मैं फूल थी,जिसे वो संभाल कर रखते थे।
हर रोज मुझे सुईया चुभाय जाने लगी थी।
नसें नहीं मिल रही तो फिर पोर्ट लगाई थी।
एक पोर्ट का वेट मुझे किसी पत्थर से कम नहीं लग रहा था।
फिर मां को याद किया तो मुझे मेरा दर्द कम लग रहा था ।
नए नए दोस्त मेरे कई सारे बन गए थे।
पर उनमें से एक लड़की मेन थी जो अब मेरे साथ नहीं है ।
कि हमारी बातें फोन कॉल्स पर भी होने लगी थी कि खाना अच्छे से खाना, अपना
ख्याल रखना से शुरू तो टेंशन मत लेना तक खत्म होती थी।
मैं एक- एक सीड़ि को पार करती जा रही थी
जो उम्मीद और हौसला ना रखें, उसकी इस बीमारी के साथ लड़ाई थी।
अचानक किसी फरिश्ते को भेज दिया था,जिंदगी में पहली बार किसी से बात करने के लिए दिल इतना बेताब रहता था।
किसी को मेरी फिक्र मुझसे ज्यादा होने लगी थी। इसी चाह में जिंदगी जीने की उम्मीद पहले से ज्यादा बढ़ गई थी।
दर्द धीरे-धीरे कम होने लगे थे।
किसी की मोहब्बत पहली दफा हम हुए थे।
मैं आंखों को आंसुओं की अब इजाजत नहीं देती थी। मिलना मुझसे अब जितना मुस्कुराती हूं,
इतना तो मैं पहले भी नहीं हँसती थी।
अब एक-एक करके सारी कीमोथेरेपी खत्म होने जा रही थी।
आज दिल ने बड़ा जश्न मनाया, क्योंकि यह लास्ट कीमो की तारीख थी।
कुछ दिन ठीक-ठाक फिर डेंगू ने हाथ मारा था।
Platelets down पानी की कमी का इशारा था।
धीरे-धीरे इस सीड़ि को भी चड़ गए थे।
खुद की नजर में मानो चैंपियन बन गए थे।
अब PET Scan पर गाड़ी रुकी हुई थी।
धड़कने मेरी भी कुछ बड़ी हुई थी।
रिपोर्ट पढ़कर हंसने लगी थी। लास्ट में पड़ा तो यहां पर फैसला USG पर टीका मिला था।
फिर से दिल में उथल-पुथल मच रही थी।
फिर USG की रिपोर्ट से दिल को बड़ी खुशी मिली थी।
अब खुशी की चाबी मेरे हाथ लग गई थी।
राम जी ने ढेर सारी खुशियां दी।
जिसे पाने के लिए में जि जान से लड़ी थी।