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हुई विदाई वर्षा ऋतु की,देखो उग आया है काश।

मनोहक ये फूल निराले, इनका महत्व है अपना खास।

पोखर,नदी,तालाब के तट पर, इनको रहना आए रास।

कोमल श्वेत पुष्प ये होते, 'हो' समाज के बड़े ही खास।

'मागे' नृत्य की शोभा इनसे, झारखंड में देखी जाए।

देख पुष्प की शोभा प्यारी सुंदरता मुख कही ना जाए

वर्षा ऋतु के बाद जो आती, शरद ऋतु मत जाना भूल।

शरद ऋतु का स्वागत करते, देखो शिउली,काश के फूल।

इन फूलों की छटा निराली, लदी हुई हर डाली डाली।

संध्या काल में ये खिल जाते, अपनी खुशबू हैं फैलाते।

शरद ऋतु में इनका जीवन, खिले सुगंधित करता है मन।

हर ऋतुओं में ये ऋतु राजा, हम सब ने है इसे नवाजा

यह है पावन मास कहाता, नई उमंगें लेकर आता।

नई चेतना नया उजाला,हर एक जीवन में भर जाता

यह ऋतु संग में लेकर आती शारदीय नवरात्रे पावन।

मैया के दर्शन से होता, अहलादित ये सारा तन मन।

काश, शिउली के जैसे ही, इस ऋतु में हर मन खिल जाता।

श्रद्धा से जो मां से मांगे "शरद" सभी को वो मिलता है।

(शरद शुक्ला "दीप")

1-हो - एक प्रकार का आदिवासी समाज

2-मागे - झारखंड के आदिवासियों का एक प्रकार का नृत्य

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