(अंग दान एक ऐसा महान कार्य है, जो हमें मृत्यु के बाद भी अमर बना सकता है। इस कविता के माध्यम से यह बताया गया है कि कौन-कौन से अंग कितने समय तक उपयोगी रहते हैं और जरूरतमंदों को दिए जा सकते हैं। हम सबको इस पुनीत कार्य के लिए संकल्प लेना चाहिए। शरीर दान के माध्यम से हम न केवल विज्ञान और चिकित्सा के विकास में योगदान दे सकते हैं, बल्कि कई लोगों को नया जीवन भी दे सकते हैं।
—जीवन का सार सिर्फ जीना नहीं,
बल्कि दूसरों को जीवन देना भी है। )
जीवन का सार है देना, यह उपकार महान है,
मरकर भी जो जिंदा रहे, वो "अंग दान" है।
जब तक हम हैं, सांसें चलें,
रहें धड़कनें, आँखें चमकें।
पर सोचो तो क्या सार है इसमें,
यदि हम दूसरों के काम न आएं।
नेत्रदान - का आलोक जले,
अंधेरे जीवन को उजाले मिले।
छः घंटे तक ये संभव है,
नेत्रदान का संकल्प करें।
हृदय -हमारा धड़क सके,
चार घंटे तक जीवित रहे।
किसी की धड़कन बन जाए,
किसी को जीवन उपहार मिले।
यकृत (लीवर) - का क्या कहना,
बारह घंटे तक इसका रहना।
जो विष पिए हर एक जन के,
दूसरे के तन को दे देना।
अग्न्याशय (पैंक्रियास) -भी अमूल्य धरोहर,
बारह घंटे तक इसका अवसर।
मधुमेह से जो कोई पीड़ित हो,
जीवन उसका सुधर सके।
गुर्दे (किडनी) - चौबीस घंटे,
रखें सुरक्षित,दें इसे आगे।
एक किडनी में भी जीवन बचे,
किसी की साँसें बनीं बहारें।
फेफड़े ( लंग्स ) -अमूल्य निधि हैं,
छः घंटे तक रहते जीवित।
किसी की साँसों का सहारा बनें,
प्राण वायु का उपहार बनें।
आंत ( इन्टेसटाइन) -भी दिया जा सकता,
छः घंटे तक जीवित रहता।
कई रोगों से जूझ रहे,
नया जीवन इससे मिलता।
त्वचा, अस्थियाँ, और रक्त भी,
हर कण जीवनदाता है।
कोई जले, कोई गिरे, कोई टूटे,
ये हर घाव को भरता है।
क्या हम केवल अपने लिए हैं?
क्या जीवन का मोल यही है?
यदि देह छोड़ जाए प्राण,
तो क्यों न बनें अमर महान?
शरीर दान भी करें समर्पित,
जो पढ़े हमें, वो जाने विज्ञान।
नए शोध, नई विधियाँ हों,
मानव सेवा का बने प्रमाण।
चलो प्रण करें हम सब मिलकर,
जीवन को सार्थक बनाएं!
जो इस तन को छोड़ें, तब भी,
कई तन में जीवित रह जाएं!