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(दुनिया एक मेला है
फिर भी यहां हर शख्स अकेला है)
आज मन था बहुत उदास कोई नहीं था आसपास|
मोबाइल ले हाथ में सोचा , किसको करूं कॉल|
किससे करूं बात , किसे सुनाऊं अपने दिल का हाल।
तभी आकस्मिक एक नंबर हो गया डायल|
उधर से आवाज आयी , बताओ क्या हाल-चाल?
कितने दिनों से तुमने करी नहीं मुझसे मुलाकात।
शिकायतें तो बहुत है तुमसे , पर छोड़ो वह सब आज।
बताओ कैसे आयी मेरी याद ? क्या मुझसे है कुछ काम?
मैं जानती हूं , तुम हो बहुत उदास और परेशानI
नहीं ढूंढ़ पा रही अपनी समस्याओं का समाधान।
मेरे से बेहतर तुम्हें कौन जानता है
मुझसे करती तो कभी विचार विमर्श,
कहती दिल की बात।
शायद हो जाता है तुम्हारा तुम्हारी परेशानियों से शीघ्र निदान।
मेरे साथ कुछ वक्त बिताती।
मैं तुम्हें बहुत कुछ सिखलाती।
मैंने ही रखे हैं संजोकर तुम्हारे सब ख्वाब।
देखे हैं मैंने उन्हें पूरा करने के तुम्हारे प्रयास|
कभी मेरे साथ लगाती जिंदगी का गणित।
क्या खोया ,क्या पाया , कुछ तो करती हिसाब।
तेरी जिंदगी का हर पन्ना में पढ़ती हूं।
मैं ही तो हूं तेरी जिंदगी की किताब।
इधर-उधर भटक कर , क्यों करती हो समय बर्बाद।
किसके पास है वक्त जो सुने तुम्हारी बात।
कभी एकाग्रचित होकर आती मेरे पास।
सुलझ जाती तुम्हारी हर उलझन
जरा करती तो मुझ पर विश्वास।
मैने पूछा --कौन हो तुम ? कैसे जानती हो मेरे बारे में इतना सब?
तभी बजा अलार्म , आंख खुली तो जाना यह तो था एक ख्वाब।
अरे ये तो मेरे भीतर से मेरी तन्हाई की थी आवाज।
कितना सच्चा था यह ख़्वाब।
कभी खुद से की ही नहीं बात।
कहां सही , कहां गलत ,किया ही नहीं कभी आंकलन।
मुझसे बेहतर कौन होगा ,मेरा हितैशी , मेरा शुभचिंतक।
क्यों नहीं दिया कभी समय खुद को,
क्यों नहीं की खुद से बात।
औरों को मनाती रही , खुद से क्यों रही इतना नाराज?
पर अब वक्त है संभालने का अब करूंगी खुद से रोज बात।
अब कुछ शामें बीतती हैं मेरी ,मेरे खुद के ही साथ|
मैं और मेरी तन्हाईयां अब अक्सर करते है बात।
ये तनहाइयां बहुत कुछ बोलती हैं।
मुझसे मेरे ही मेरे राज खोलती हैं।
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