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( टूटे दिलों का दर्द और जीवन में बिखरे हुए रिश्तों की कसक हर व्यक्ति ने कभी न कभी महसूस की होगी। मनुष्य के जीवन में भावनाएँ सबसे कोमल और शक्तिशाली तत्व होती हैं, जो उसे जोड़ती भी हैं और तोड़ती भी। लेकिन क्या हो, यदि ऐसा स्थान हो जहाँ हर टूटा दिल जुड़ सके, हर बिखरा सपना फिर से संजोया जा सके?


यह कविता "दिलों की मरम्मत" इसी कल्पना को जीवंत करती है। यह एक ऐसी दुकान की परिकल्पना है, जहाँ नफरत का कोई नामोनिशान न हो, केवल प्रेम और स्नेह की मिठास हो। जहाँ दर्द के धागों को जोड़कर उम्मीद के नए तिनके बुने जाएँ। जहाँ न केवल टूटे दिलों को सहारा मिले, बल्कि एक ऐसा समाज हो जहाँ रिश्तों का महत्व समझा जाए, और हर व्यक्ति अपनी नफरत व स्वार्थ को पीछे छोड़कर प्रेम और सुकून की ओर अग्रसर हो तथा मानवीय संवेदनाओं को गहराई से महसूस करे।

"दिलों की मरम्मत" न केवल एक दुकान की आकांक्षा है, बल्कि एक बेहतर समाज और स्नेह से भरी दुनिया का सपना है। )

जहाँ टूटे दिल की मरम्मत हो सके,
शहर में ऐसी दुकान खुल जाये।
जहाँ दर्द के धागे जुड़ सकें,
और ग़म के निशान धुल जायें।

जहाँ हर ज़ख्म पर मलहम लगे,
हर आँसू को हँसी से धोया जाये।
जहाँ उम्मीद के तिनके जोड़कर,
नये ख्वाबों का घरौंदा सजाया जाये।

दुकान हो ऐसी, जहाँ से कोई निराश न जाये,
बस सबके बिखरे अरमान यहाँ सँवारे जायें।
जहाँ नफरत का नामो-निशान न हो,
सिर्फ प्यार के गीत गुनगुनाये जायें।

दिलों को जोड़ने वाले हुनरमंद हों,
जो हर दर्द का इलाज जानें।
हर टूटन को जुड़ाव में बदल दें,
और रिश्तों के मायने पहचानें।

जहाँ रिश्तों में खटास न आये,
सिर्फ स्नेह का रस बरसाया जाये।
जहाँ लोग अपने स्वार्थ भूलकर,
सिर्फ खुशियाँ दूसरों को बांटें।

जहाँ धड़कनें नफरत में खो न जायें,
हर दिल के लिए सुकून हो।
जहाँ मन के दरवाजे खुले रहें,
और प्रेम से जीवन भरपूर हो।

दुकान के आगे कतारें लगें,
हर टूटे इंसान को सहारा मिले।
नफ़रतों की दीवारें गिर जाएँ,
और हर कोना फिर से आबाद मिले।

काश, ऐसा कोई कोना मिले,
जहाँ दिल का बोझ हल्का हो जाये।
जगह ऐसी, जहाँ कोई अकेला न हो,
हर दिल को अपना कोई मिल जाये।

जहाँ हर दर्द को शिफ़ा मिल सकें,
और हर सिसकी मुस्कान से खिल जाये।
जहाँ टूटे दिल की मरम्मत हो सके,
शहर में ऐसी दुकान खुल जाये।

काश शहर में ऐसी दुकान खुल जाये|

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