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 (युद्ध की विभीषिका से बचें और शांति की महत्ता को समझे। युद्ध सदा अपार क्षति, मानवीय पीड़ा और विनाश का कारण बनता है। युद्ध को टालने और शांतिपूर्ण समाधान खोजने की प्रबल प्रयास होने चाहिए । बातचीत, समझौते और आपसी समझ के माध्यम से विवादों का हल होना चाहिए, ताकि धरती पर सुख, शांति और प्रेम का वातावरण बना रहे। शांति ही अंतिम सत्य है और हमें हर कीमत पर इसे बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। )

नहीं चाहिए रण की ज्वाला, नहीं चाहिए रक्त की धारा,
जहाँ तक हो जंग टले, यही है हमारी प्रार्थना।
वो धरती माँ की कोख जले, जब तोपें गरजती हैं रण में,
माथे का सिंदूर मिटे, जब वीर धराशायी हो क्षण में।
सिसकती विधवा की आहें, चीखों से भरता है अंबर,
अनाथ हुए बच्चों की आँखों में, दिखता है सूना मंज़र।

नहीं चाहिए वो विजय ध्वजा, जो लाशों के ढेर पर लहराए,
नहीं चाहिए वो सिंहासन, जो आँसुओं की नींव पर बनाए।
मुलाकातों के दौर चले, दिलों के तार आपस में जुड़ें,
बैठकर सुनें एक दूजे को, हर मन का संशय दूर करें।

बातचीत से मसलों के हल हों, तर्क और विवेक का हो डेरा,
क्यों लहू बहाकर सींचें धरती, क्यों करें जीवन अँधेरा?
समझौते की राहें खुलें, विश्वास की फिर से हो बुनियाद,
हर समस्या का समाधान संभव, गर मन में हो शांति की याद।

किसी माँ की गोद न सूनी हो, न कोई बहन अपना भाई खोए,
हर घर में खुशियों का दीपक जले, न कोई दर्द से रोए।
सरहद पर सैनिक भी सुरक्षित हों, लौटे वे हँसते घर अपने,
मिटे बैर का भाव दिलों से, सजे अमन के सुंदर सपने।

वो खेत खलिहान फिर से महकें, बच्चों की किलकारी गूंजे,
हर गली, हर नगर, हर गाँव में, प्रेम की सरिताएँ पूजें।
कलम की ताकत को पहचानो, शब्दों में है वह जादूगर,
जो नफरत की दीवारों को भी, पल भर में कर दे बेअसर।

क्यों उठाएँ हथियार हम, जब वाणी में इतनी शक्ति है,
क्यों करें लहूलुहान धरा को, जब प्रेम की निर्मल भक्ति है?
आओ मिलकर दीप जलाएँ, आशा और विश्वास के हम,
शांति का संदेश सुनाएँ, हर दिशा में, हर मौसम।

यह धरती सबकी माता है, हम सब हैं इसके ही बालक,
क्यों आपस में लड़कर खो दें, जीवन का सुंदरतम पालक?
त्याग और सहिष्णुता से ही, बनती है मानवता महान,
चलो मिलकर करें प्रयत्न ऐसा, बचे हर प्राणी की जान।

नहीं चाहिए रण का कोहरा, छा जाए जो दिशाओं में,रहें अन्य विकल्प सदा खुले।
रोशनी भरो दिलों में ऐसी, मिट जाए अंधियारा क्षण में।
मुलाकातों का दौर अनवरत चले, कभी न हो विराम,
शांति ही अंतिम सत्य है, यही जीवन का अभिराम।

बिखरे रिश्तों को फिर से सींचे, स्नेह और सम्मान के जल से,
भूली बिसरी यादें ताजा हों, मिलें गले हर हर्ष से।
संवेदना का भाव जगाओ, हर पीड़ित की पीड़ा समझो,
मरहम बनो दुखी दिलों का, आँसुओं की भाषा समझो।

ज्ञान और विज्ञान का हो संगम, प्रगति की राहें प्रशस्त हों,
कला और संस्कृति की आभा से, जीवन के रंग अनस्त हों।
प्रकृति का सम्मान करें हम, पर्यावरण का रखें ध्यान,
आने वाली पीढ़ी पाए, स्वस्थ धरा का वरदान।

हर चेहरे पर मुस्कान सजे, उदासी का न हो कोई डेरा,
गीत मधुर हों होंठों पर, खुशियों का हो सर्वत्र बसेरा।
भेदभाव की दीवारें गिरें, समानता का हो प्रकाश,
हर मानव गरिमा से जिए, यही हो अपना प्रयास।

आशा के पंखों से उड़ें हम, भविष्य सुनहरा अपना देखें,
प्रेम और एकता के बंधन में, बंधे रहें, कभी न टूटें।
शांति की ध्वजा सदा उड़े, आकाश में बनके सितारा,
यही कामना है मन में अपने, यही जीवन का सहारा।

मिलन की स्याही से शांति की किताब लिखी जाए।
मुलाकातों के दौर चले , रहें अन्य विकल्प सदा खुले।
नहीं चाहिए रण की ज्वाला, नहीं चाहिए रक्त की धारा,
जहाँ तक हो जंग टले, यही है हमारी प्रार्थना।

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