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(कैकेई का नाम इतिहास में एक ऐसी नायिका के रूप में दर्ज है जिसे सामान्यत: नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। रामायण के प्रसिद्ध कथा-प्रसंग में कैकेई को वह स्त्री माना जाता है, जिसने राम के वनवास का कारण बनकर, उनके जीवन और अयोध्या के भविष्य में संकट ला दिया। परंतु, यदि हम इस घटना की गहरी परख करें और कैकेई के निर्णयों की दूरदृष्टि को समझने का प्रयास करें, तो एक नई और अनदेखी सच्चाई उभरती है।
कैकेई का निर्णय मात्र स्वार्थ या मोह का परिणाम नहीं था, बल्कि उसमें प्रजा और राज्य के कल्याण के लिए गहन सोच छिपी हुई थी। राक्षसों के बढ़ते आतंक और अधर्म के अंधकार को मिटाने के लिए राम का वनवास आवश्यक था। कैकेई ने एक माँ, पत्नी और रानी के रूप में अपने व्यक्तिगत सुखों से ऊपर उठकर राज्य और धर्म की रक्षा के लिए यह कठोर निर्णय लिया।
यह कविता कैकेई के इस बलिदान और उसकी दूरदर्शिता को समझने का एक प्रयास है। इसमें उस रानी की गाथा कही गई है, जिसने समाज के कल्याण और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए अपने हृदय के सबसे प्यारे रिश्तों को भी चुनौती दी। इस भूमिका के साथ, हम कैकेई को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयास करें तो वह केवल एक शोकग्रस्त माँ नहीं, बल्कि एक साहसी और बुद्धिमान नायिका बनकर उभरती है। )
जब बात हो कैकेई की, लोग करें निंदा हज़ार,
इतिहास के पन्नों में, छुपा है उसका महान विचार।
दशरथ की वह प्रिय रानी, दिल से वीर और महान,
लेकिन कोई न समझा, उसका दूरगामी बलिदान।
मंथरा के कहने पर, सबने उसे दोषी ठहराया,
पर उसके दिल के भीतर, था एक और ही साया।
राम को वनवास दिलाना, था कोई साधारण काम नहीं,
प्रजा का हित सोचा उसने, यह उसकी परवाह थी सही।
जब देखी उसने राक्षसों की बढ़ती शक्ति भारी,
राजा दशरथ की आँखों में न थी कोई चिंगारी।
उसने चुना कठिन मार्ग, जिसमें था बलिदान,
प्रजा के हित में ही तो, उसने किया ये कार्य महान।
राम को भेजा वन में, ताकि हो राक्षसों का अंत,
दूर दृष्टि से देखा उसने, उनका सर्वनाश अनंत।
न चाहा उसने कभी भरत को राजमुकुट मिले,
न पुत्र भरत के मन में कभी स्वार्थ के बीज बोये।
भरत का मन निर्मल था, माँ की सोच वो समझ न पाया,
कैकेई का त्याग गहरा, जिसने राम को धर्म का मार्ग दिखाया।
अगर चाहा होता राज्य, बचपन से ही सिखाती भरत को,
पर रानी का मन पावन था, स्वार्थ रहित कर्तव्य निभाने को।
भरत ने जब किया इनकार, राज्य ग्रहण से दूर हुए,
माँ के सच्चे आदर्श पर, दोनों पुत्र दृढ़ खड़े हुए।
कैकेई का त्याग महानों में गिना जाएगा,
उसकी दूरदृष्टि का सत्य, अब सभी के मन को भाएगा।
राम का वनवास था योजना, राक्षसों के संहार की,
प्रजा को सुखी करने की, और धर्म को नित आधार दी।
कैकेई की दूरदृष्टि थी, उसकी महान सोच,
इतिहास का वो हिस्सा है, जिसे नहीं समझे लोग।
जब भी सोचो कैकेई की, याद रखना वह बलिदान,
धर्म, दूरदृष्टि, राज्य हित में, किया महान काज।
प्रजा सुख के लिए जिसने छोड़ दी सत्ता की माया
न थी वह केवल रानी, न थी कोई साधारण नायिका,
त्याग, तप और साहस से गढ़ी, उसकी अमर कहानी है एक मिसाल,
हर युग में गूंजेगा कैकेयी का नाम, रहेगी वह सदा बेमिसाल।
राज्य का कल्याण ही, था केवल उसका सच्चा सपना,
इतिहास के पन्नों में, उसका त्याग हैं अनमोल गहना।