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(भगवान ने बहुत सुन्दर सृष्टि की रचना की और उस शक्तिमान, सर्वव्यापी, सर्वाधार परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य (इन्सान) हैं।)

क्या भगवान इन्सान बना कर पछताया?

यूं ही एक दिन मेरे मन में ख्याल आया,
क्या भगवान इंसान को बनाकर पछताया?
क्या अपनी सृष्टि में उसने कुछ गलती पायी?
क्या कभी सोचा क्यों मैंने यह दुनिया बनायी?
जब उसने मिट्टी से गढ़ा था इंसान,
सोचा होगा यही है मेरा सबसे सुंदर विधान।
दिया उसे मन, दिया उसे ज्ञान,
प्यार बांटने की क्षमता और सपनों की उड़ान।
पर इंसान ने जब अपने पंख फैलाए,
धरती पर स्वर्ग की जगह उसने नर्क  बनाए।
लालच में डूबा, स्वार्थ में उलझा,
प्रकृति को भूल अपनी ही राह चला।
हरियाली काटी, नदियों को दूषित किया,
जानवरों से उनका बसेरा खुद के लिए छीन लिया।
युद्धों का प्रारंभ किया, किया नफरत का विस्तार,
भूल गया इंसान भगवान के उपकार।
भगवान भी शायद पछताया होगा, 
क्यों दी मैंने यह शक्ति, 
क्यों बनाया उसे जो खुद को 
ही नहीं समझ सका सही।
क्यों दी उसे बुद्धि,
 जो उसने विनाश की ओर मोड़ी,
क्यों दी उसे कर्म स्वतंत्रता,
जो उसने हर सीमा तोड़ी।
सबकी एक जैसी रूह,
हर दिल में बसी एक सी धड़कन,
 फिर नफरत का बीज बो, 
इंसानियत पर क्यों लगाया कलंक।
भगवान ने बनाया था प्रेम का संसार,
इंसान ने बना लिया इसे  संघर्ष का बाजार।
मगर फिर भी भगवान ने उम्मीद ना हारी।
हर सुबह के साथ एक नई सृष्टि संवारी।
शायद किसी दिन यह बात इंसान समझेगा,
अपनी गलतियों से सबक ले, दुनिया को संवारेगा।
जब भगवान ने देखा कुछ इंसान अभी भी है अच्छे,
उन्होंने प्रेम, शांति, करूणा, समर्पण के जलाये दिये 
उन्होंने किया प्रकृति से प्रेम और संभाली है दुनिया 
भगवान ने कहा यही है उसकी सही प्रतिछाया।
क्या भगवान इंसान को बनाकर पछताया?
क्या भगवान यह दुनिया बनाकर पछताया?
इस प्रश्न का उत्तर मैं कभी न समझ पाया!

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