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(आज के समाज में रिश्तों की पवित्रता और विश्वास लगातार कठोर परीक्षाओं से गुजर रहे हैं। जब वही जीवनसाथी, जिससे उम्रभर का साथ निभाने की कसमें खाई जाती हैं, विश्वासघात कर बेरहमी से हत्या कर देता है, तो यह केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि मानवता की हार होती है।

इस कविता में उन अनसुनी चीखों, अधूरे सपनों और अनगिनत सवाल है, जो किसी की बेवफाई और क्रूरता की भेंट चढ़ गए। यह केवल मृत आत्माओं की पीड़ा नहीं, बल्कि समाज के सामने एक कठोर प्रश्नचिह्न भी है—क्या प्रेम, भरोसा और जीवनसाथी का वचन इतना कमजोर हो चुका है कि उसका अंत खून से लिखा जाता है?
यह कविता उन असहाय आत्माओं की ओर से उठाई गई एक गूंज है, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जिनका दर्द और सवाल हमेशा हमारे बीच जिंदा रहेंगे। )

मैं तो बस तुम्हारी आँखों का सपना था,
तेरी हँसी की मासूम सी वजह बनना था।
तुम्हारी हर ख़ुशी में खुद को खो देना था,
तेरी दुनिया को अपनी बाहों में समेट लेना था।

मगर तुमने खंजर उठाया क्यों?
क्या मुझे मारना ज़रूरी था?

तुम्हारे नाम की मेहँदी में,
अपनी ज़िन्दगी के रंग देखे थे।
तेरे आँचल की छाँव में,
हमने सुहाने पल देखे थे।

तेरी कसमों पर एतबार किया था,
तेरे हर झूठ को भी प्यार किया था।
फिर भी तेरा दिल पत्थर हुआ क्यों?
क्या मुझे मारना ज़रूरी था?

वो वादे, वो कसमें सब झूठे थे क्या?
मेरी मोहब्बत में कोई कमी थी क्या?
मैं तो बस तेरा हमराही बनना चाहता था,
तेरे संग जीना और बस तेरा साथ चाहता था।

क्यों किसी और की बाहों में सुकून मिला?
क्यों मेरी साँसों को तड़पता छोड़ दिया?
मेरी हर धड़कन तुझसे जुड़ी थी,
फिर क्यों तूने ही मेरी धड़कन तोड़ दी?

तू इतना बता दे, क्या मेरा कसूर था?
तूने मुझसे प्रेम किया था, या सब कुछ झूठा दौर था?
अगर तेरा मन भर गया था इस रिश्ते की डोर से,
तो कह देती, छोड़ देता तुझे अपने ही जोर से।

खून से सने तेरे हाथ कांपे नहीं?
तेरी आँखों में कोई आँसू आए नहीं?
या तेरे दिल का प्यार भी झूठा था?
क्या मुझे मारना ज़रूरी था?

मेरे परिवार ने क्या बिगाड़ा था?
क्यों उनकी आँखों में अश्रु भरा?
मेरी माँ के सूने आँगन का,
क्या तुमने कभी विचार किया?

शायद कभी किसी रात तुझे भी अहसास होगा,
तेरे हाथों से बहा खून तेरा ही इतिहास होगा।
मेरी रूह तुझे हर मोड़ पर टोकती रहेगी,
तेरी नींदों में मेरी चीखें गूंजती रहेंगी।

तब तेरा दिल खुद से पूछेगा,
क्या मुझे मारना ज़रूरी था?

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