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-( जीवन पर्यंत हम भागते रहते है अनगिनत सपनों के पीछे , मन में होती हैं दूसरों से आगे निकलने की होड़ ,पा लेना चाहते हैं संसार की हर खुशी हर सुख घर से दूर , अपने से अलग पैसा कमाने
पर जिंदगी भर हम यह जान ही नहीं पाते कि हम आखिर चाहते क्या हैं ?
यहां में अपने मन की अभिलाषा व्यक्त कर रही हूँ
जो शायद आपके मन की भी हैं ।-----)
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
घर में ऐसा हो अपना एक कोना।
खुद के साथ कुछ पल बिताऊं जहां।
मैं बस इतना ही चाहती हूं
हर सुबह ताजगी भरी,
जहाँ ओस की बूँदें हो,
और हो चिड़ियों की रागिनी।
मैं बस इतना ही चाहती हूं
हो रंगों की वो बौछार,
जो भर दे मेरे जीवन में,
हर दिन नया त्यौहार।
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
एक सच्चे दोस्त का साथ,
जिसके साथ बाँट सकूँ,
दिल की हर एक बात।
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
उम्मीद की स्याही से
लिखूं जिन्दगी की किताब,
हर पन्ने पर हो नया ख्वाब।
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
सपनों की वो उड़ान,
आशाओं के पंख लगा,
बिना किसी रोक के,
छूं लू अपने हिस्से का आसमान।
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
बगिया की वो हँसी,
जहाँ हर फूल मुस्काए,
और गुनगुनाती हवा बहे।
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
नदियों में हो वो बहाव,
जो ले जाए अपने संग,
सारे दुःख और दे जाए सुख अपार।
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
जीवन में पर्वत की सी ऊँचाई,
जहाँ खड़ी हो सकूँ,
और महसूस करूँ सच्चाई।
मैं बस इतना ही चाहती हूं,
जीवन का हर पल,
जो हो खुशी से भरा,
और मन हो निर्मल निश्चल।