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कविता "प्यार का चटपटा किस्सा" एक दिलचस्प और मनोरंजक घटना को दर्शाती है, जहाँ कल्पना और वास्तविकता के बीच की महीन रेखा एक रोचक उलझन पैदा कर देती है।

कविता न केवल इस मज़ेदार गलतफहमी को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि साहित्य कल्पना की उड़ान होती है, जिसे वास्तविक जीवन से जोड़कर देखना कभी-कभी अनावश्यक भ्रम पैदा कर सकता है। अंततः, संवाद और स्पष्टता के माध्यम से इस गलतफहमी को सुलझाया गया ।
यह कविता हास्य, भावना और संदेश का सुंदर मिश्रण प्रस्तुत करती है, जो पाठकों को आनंदित करने के साथ-साथ एक महत्वपूर्ण सीख भी देती है।

शब्दों की दुनिया में कदम जब रखा,
हर पंक्ति में एक नया रंग सजा।
मंच पे बिखेरी भावों की माला,
हर पाठक ने मुझको अपनाया।
रचनाएँ गूँजी, वाह-वाह मिली,
प्रतियोगिताओं में विजेता बनी।
हर पंक्ति में स्नेह, हर छंद में बात,
कलम चलती रही दिन और रात।
पर शब्दों की दुनिया भी कमाल की है,
जहाँ दोस्ती भी है, तो प्रतिद्वंद्विता भी है।
एक रचनाकार को खटका ये हाल,
कि अब मंच पर है नया धमाल।
वो थीं मंच की पहली चमकती किरण,
पर अब बदल रही थी ये तस्वीर।
हुआ कुछ ऐसा, जो सोचा न था,
उनके दिल में बना संशय का बादल घना।
"प्यार का चटपटा किस्सा"
प्रतियोगिता का आयोजन हुआ
हमने उसमें उत्साह से भाग लिया
कविता थी बस कल्पना की उड़ान
मिला प्रतियोगिता में हमें प्रथम स्थान
कविता जो लिखी थी दिल से सजी,
वो प्यार की कहानी, चटपटी थी बड़ी।
उन श्रीमती जी को हुआ गुमान
कि उनके पति और हमारे बीच की
हैं ये कालेज के जमाने की सच्ची दास्तान
हमारे कालेज के सहपाठी थे उनके श्रीमान
हम इस बात से थे पूरी तरह अनजान,
बिखरती रही बातें, गहराया द्वंद्व,
उनके मन में उठे कई संशय के प्रश्न।
जब हम तक पहुंची ये सारी बात
हँसी से हमारा हुआ बुरा हाल
बड़ी मुश्किलों से हमने उन्हे समझाया,
ये सिर्फ़ शब्दों का है खेल निराला।
इस कविता में कोई हकीकत नहीं,
उनके पति और हमारे बीच कुछ नहीं
कल्पना की उड़ान है रचना असली नहीं।
समझी वो जब, हकीकत सारी
सबसे उन्होंने माफी मांगी
समाप्त हुआ उनके मन का द्वन्द।
दूर हुये संशय न रहा मन में कोई प्रश्न।
अब मंच पर ही नहीं, जीवन में भी,
बन गईं वो मेरी प्रिय सखि।
लेखन का जादू यूँ चलता रहे,
हर शब्द से दिलों को जोड़ता रहे।
मंच पर रहें सब स्नेह से बंधे,
हर कविता से प्रेम की गूँज उठे।

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