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(उत्तर भारत में चल रही हैं शीत लहर

कई दिनों से नहीं दिख रहे दिनकर
अलाव और चाय का ही है सहारा
हाय सर्दी ने क्या कहर बरपाया
सभी कोस रहे हैं सर्दी को
सर्दी क्या चाह रही उससे भी तो कोई पूछो)

हवा में अदरक की  सुगन्ध घुल रही हैं
बर्फ से ठिठुरती सर्दी को भी चाय की चाह हो रही हैं

चाय भी आज  क्या अदाएं दिखा रही है
पत्ती , दूध से मिलकर क्या सुर्ख रंग सजा रही हैं

सारे दुःखों का पानी , उबाल दिया आज
गमों को कूटा बारीक ,हंसी की डाल दी मिठास

ख्वाबों का दूध और हसरतों की पत्तियां दी डाल
अपने ही ख्यालों को देर तक दिया उबाल

कुछ बन रही हैं जिन्दगी की चाय इस तरह,
घूंट-घूंट पीकर बस ले रहे हैं इसका मजा।

चाय जैसी भी बनी हैं पी रहें हैं,
जिन्दगी जैसी भी मिली है जी रहे हैं।

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