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( हर लेखक की यात्रा अपने भीतर छुपी भावनाओं, विचारों और रचनात्मकता को खोजने से शुरू होती है। लेकिन इस यात्रा में डर, संकोच, और समाज की प्रतिक्रिया का डर अक्सर बाधा बन जाता है। यह कविता उस संघर्ष, झिझक और अंततः आत्मविश्वास की कहानी है जो एक लेखक को अपनी पहचान बनाने के लिए प्रेरित करती है। सोशल मीडिया और साहित्यिक मंचों ने जहां अभिव्यक्ति को नई दिशा दी, वहीं यह कहानी हर उस लेखक का प्रतिनिधित्व करती है जिसने अपनी कलम को उड़ान भरने का साहस दिया। यह कविता न केवल लेखन की शक्ति को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक मंच और प्रोत्साहन किसी के सपनों को साकार कर सकते हैं। )

कभी खामोशियों में मैंने खुद को पाया,
हर शब्द, हर भाव दिल में छिपाया।
कोई भाव , विचार , कहानी लिखी
डायरी के पन्नों पर ही गुम हो गयी

लोगों की नजरें, उनकी बातें चुभेंगी,
मेरे शब्दों की ताकत कहीं खो जाएंगी।
सोचा, किसे सुनाऊं , कैसे दिखाऊं,
कहीं हंसी का पात्र न बन जाऊँ|

फिर आई सोशल मिडिया की दुनिया नई,
विभिन्न मंचों पर रचनाओं की छवि दिखी।
लिखा मैंने, डरते-डरते शब्दों का खेल,
पहली बार महसूस हुआ, ये अनोखा मेल।

जब इस मंच पर मिली विजय की वाहवाही,
दिल में जागी एक नई चमकती रौनक सी।
हौसला बढ़ा, विश्वास को पंख मिल गए,
अब शब्दों को उड़ान देने से न रोक पाए|

रचनाओं ने पाई जब समाज की पहचान,
डायरी के पन्नों से निकले अरमान।
अब न कोई झिझक, न कोई डर का नाम,
लिखने लगी मैं खुलकर, बन गई मेरी पहचान।

हर कविता, हर कहानी दिल से बहती धार,
अब शब्दों में न होती कोई रुकावट की दीवार।
साहित्य से प्रेम था गहरा, अदृश्य था ये बंधन,
रचनाएँ मेरी, खुद की आवाज़ से अनजान|

लिखना मेरा जुनून बन गया है आज,
इस मंच ने दी मुझे लेखिका की पहचान|
इस मंच पर मिला मेरी रचनाओं को सम्मान,
दिल को मिली एक नई तरंग , नई उड़ान।

कभी जो था डर, अब है गर्व और मान,
शब्दों से बना है अब मेरा अद्वितीय स्थान।
मेरी रचनाओं ने दी मुझे नयी पहचान,
हौसलों ने छेड़ा है मेरे जीवन का नया गान। 

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