टेढ़े - मेढ़े सपने

कभी तो कुछ वैसा हो जैसा मैंने सोचा था

Literature

01 April 2025 11:57 pm

Edited On - 01 April 2025 11:57 pm

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Image by Enrique from Pixabay


कभी तो कुछ वैसा हो जैसा मैंने सोचा था,
जहां हर रास्ता हो आसान, जो दिल ने बोला था।
न हो कोई चिंता, न हो कोई बंधन,
बस हो आज़ादी, जहां हो मेरा मन।

चाहूं मैं उड़ना खुली हवाओं में,
छू लूं आसमान, सपनों की छांव में।
जहां हो खुशियां, हर कदम पर मुस्कान,
न हो ग़म का साया, न हो कोई परेशान।

बने हर सपना मेरा सच का आईना,
कभी न हो कोई झूठ, न कोई अफ़साना।
हर दिल में बस हो प्यार का एहसास,
न हो कोई द्वेष, न हो कोई उदास।

दुनिया हो सजीव, रंगीन और प्यारी,
हर दिन हो नई उम्मीदों की सवारी।
बिछड़ न जाए कोई, जुड़े सबके हाथ,
हर कदम पर मिले, जीवन में साथ।

कभी तो सब कुछ हो जैसा दिल ने चाहा,
मिले मंज़िल वहीं, जहां सपना हो सजा।
बातें हों दिल की, खुलकर बयां,
हर ओर हो बस प्यार की परछाईं।

पर ये भी तो सच है, ज़िंदगी एक खेल,
कभी हार, कभी जीत, के मिलते हैं मेल।
जो हो ना वो, भी सिखाए सबक,
सपनों से आगे भी, खुलता है पथ।

कभी तो कुछ वैसा हो जैसा मैंने सोचा था,
मगर जो है, शायद वही अच्छा था।
क्योंकि जो मिला, उसमें भी था प्यार,
खुशियों के रंगों से सजी ये बहार।

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