किसी का भी विरोध करना कभी भी आसान नहीं होता है । विभीषण के लिए लंका के शासक रावण का विरोध करना तो अत्यंत कठिन था । निसंदेह रावण विद्वान था उसमें कई गुण थे , लेकिन समर्थन या विरोध करते समय यह देखना जरूरी होता है कि समूचे रूप में कोई व्यक्ति राज्य के लिए घातक तो नहीं है ।विभीषण ने रावण के सारे पाप कृतियों को देखा था , इसलिए उसकी अंतरात्मा ने रावण के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उसे प्रेरणा दी । विभीषण ने हमेशा सत्य धर्म और राष्ट्रहित को सर्वोपरि माना , विभीषण ने रावण के विरुद्ध खड़े होकर सही निर्णय लिया क्योंकि विभीषण देशभक्त था ना कि देशद्रोही । 

वह रात थी अंधेरी मन में था घना अंधकार,
महल की चुप्पी में दिल में उठ रहा था तूफान ।
विभीषण बैठा मौन भीतर था द्वंद का शोर,
भाई का साथ दूं या धर्म का यही था दिल पर जोर ।

रावण का साम्राज्य विशाल, अब लगा सिमटता,
अहंकार में डूबा रावण सत्य से कटता ।
विजय की चाह में रावण न्याय भूल चुका,
सोने की लंका में धर्म को तज चुका ।

विभीषण ने खुद से कहा - हे मन क्यों तू इतना डरता हैं?
भाई का साथ देना क्या यही तेरा कर्तव्य है?
रावण है अधर्म के पथ पर वह विनाश की ओर बढ़ रहा,
सत्ता के इस अंहकार में तू सच्चाई को देख जरा !

भाई के द्वार पर खड़ा रक्त रिश्तो से बंधा,
विभीषण के अंदर एक युद्ध निरंतर चल रहा ।
राष्ट्र और धर्म का था अब सामने प्रश्न खड़ा,
धर्म की राह पर विभिषण अपनों से ही जूझ रहा ।

अंतर मन से लड़ते हुए विभीषण ने रावण से कहा -
हे भाई - तुमने क्यों अपना आत्म सम्मान त्यागा ।
क्या तुम भूल गए हो कि धर्म का है एक नियम,
जो करें अधर्म उसका नाश निश्चित है एक दिन ।

रावण ने हंसते हुए कहा - क्यों है तुम्हें धर्म की चिंता,
क्या तुम्हें दिखती नहीं मेरी अनंत महिमा ।
मुझे कौन रोक सकता है इस ब्रह्मांड में ?
मैं हूं विजय पथ पर ,सब पथ है मेरे नाम से ।

विभिषण बोला - तुम्हारे अंहकार ने तुम्हें अंधा बना दिया,
सीता को हर कर तुमने अधर्म का रास्ता चुना ।
सच्चा राजा वही है जो राष्ट्र और प्रजा का ध्यान रखें ' जिसकी हर नीति न्याय और धर्म पर टिके ।

रावण ने आंखें तरेरी उसका मन क्रोध से भरा,
तुम हो मेरे विरोध में तुमने मुझे ही छला ।
चले जाओ यहां से विभिषण तुम,
इस लंका में तुम्हारा अब कोई नहीं सगा ।

विभीषण ने गहरी सांस ली पर वह न पीछे हटा,
आंसू भरी आंखों से विभीषण ने फिर ली विदा ।
तुम्हारी यह विनाश की यात्रा मुझे नहीं होगी सहन,
हे भाई तुम्हारा यह कदम लाएगा लंका का पतन ।

रावण ने किया उपहास उसका चेहरा क्रोध से तपा,
में हूं लंका का राजा मेरे आगे कौन टिका ?
लेकिन फिर वही हुआ जो विभीषण ने था कहा'
रावण का अहंकार ने ही लंका का पतन किया ।

जब भाई रावण को समझाने के हो गये विफल सभी प्रयास,
तब विभीषण ने त्यागा लंका का वैभव और रावण का साथ ।
विभीषण ने जाना यह अत्याचार सहना भी हैं महापाप,
धर्म और राष्ट्रहित के लिए विभिषण ने दिया राम का साथ ।

सत्य, धर्म, मानवता, राष्ट्र, प्रजा हित का स्थान है सर्वोच्च,
लंका हुई रावण से मुक्त, नहीं था राम को लंका का लोभ ।
विभीषण था देशभक्त एवं विलक्षण बुद्धि का परिचायक,
युद्ध में विजय पश्चात राम ने नियुक्त किया विभिषण को लंका का शासक ।

.    .    .

Discus