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(जब माता-पिता अपनी पुत्री के विवाह की बात सोचते हैं और उसके लिए उपयुक्त वर की तलाश में होते हैं, तो वे अक्सर उसकी पसंद और इच्छाओं को जानने की कोशिश करते हैं। वे यह जानना चाहते हैं कि उनकी पुत्री के मन में जीवनसाथी को लेकर क्या विचार हैं, और वह किस प्रकार का जीवनसाथी चाहती है। इसी भाव के साथ जब माता-पिता अपनी बेटी से यह सवाल करते हैं कि उसे किस तरह का जीवनसाथी चाहिए, तो पुत्री इस पारंपरिक सोच से अलग हटकर अपनी भावनाओं को प्रकट करती है। वह उन ऐतिहासिक और पौराणिक उदाहरणों से विवाह करने से इंकार करती है, जो त्याग, तपस्या, या कर्तव्य की बलि पर प्रेम को पीछे छोड़ देते हैं। इसके बजाय, वह एक ऐसा जीवनसाथी चाहती है, जो हर मोड़ पर उसके साथ खड़ा रहे, प्रेम, विश्वास, और साथ के बंधन को सबसे ऊपर रखे।)


मुझे राम से विवाह नहीं करना,
जो वनों में त्याग का गीत गाएं,
पत्नी संग वनवास भोगें,
फिर अग्नि परीक्षा में मुझे तपाए।
जिस प्रेम में शंका का स्थान हो,
जहां विश्वास बार-बार तोलें,
ऐसे बंधन से मैं दूर रहूं,
जहां प्रेम की कीमत परीक्षा बोले।

मुझे सिद्धार्थ से विवाह नहीं करना,
जो सत्य की खोज में परिवार छोड़े
जो महल त्याग, संयासी बन जाएं,
ध्यान में डूबे संसार भूलें,
पत्नी के सपनों से दूर हो जाएं।
भिक्षुक बन लौटे , साथ न निभाए
वापिस आकर भी दूर खड़े
वह रिश्ता क्या जहाँ प्रेम न रहे

मुझे कृष्ण से विवाह नहीं करना,
जो गोपियों संग मुरली बजाएं,
राधा के प्रेम में डूबे हों फिर भी,
सर्वस्व छोड़, रणभूमि में जाए
जो युद्ध की रणभूमि में हों तल्लीन,
जहां प्रेम पीछे छूट जाए,
ऐसे जीवन से मैं दूर रहूं,
जहां प्रेम, कर्तव्य में खो जाए।

मुझे अर्जुन से विवाह नहीं करना,
जो गांडीव उठाए रण में जाएं,
धर्म-अधर्म के प्रश्नों में उलझे,
जीवन संगिनी को भुला जाएं।
युद्ध ही जिसका कर्तव्य बन जाए
जो प्रेम मार्ग से विमुख हो जाए
ऐसे जीवन में कैसा सुख 
जहाँ प्रेम का दीपक बुझ जाए

मुझे शंकर से विवाह नहीं करना,
जो तपस्या में लीन हो जाएं,
कैलाश की ऊँचाइयों में खोए,
धरा पर पत्नी के आंसू बह जाएं।
जो ध्यान में हों और संसार छोड़ें,
जहां प्रेम की भाषा मौन हो,
ऐसे जीवन से मैं दूर रहूं,
जहां प्रेम के बिना सब शून्य हो।

मैं चाहूं एक ऐसा साथी,
जो साथ चले हर एक राह,
न त्यागे जीवन की खुशबू,
और न हो दूर किसी चाह।

न हो कोई धर्म का बंधन,
न हो तपस्या का भार,
बस हो प्रेम की मीठी छाया,
जहां जीवन संग-संग गुजरे हर बार।

हर रिश्ते में हो समर्पण,
हर कदम पर हो विश्वास,
साथ में रचे संसार ऐसा,
जिसमें हो दोनों का साथ।

यही हो मेरे विवाह का सपना,
जहां न हो त्याग, न हो कठिन तप
बस हो प्रेम का गहरा सागर,
और जीवन संग चले हर पथ।

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