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चले जा रहे थे अपनी अपनी राहें हम तुम
इक रोज़ अचानक हम मिले और पूरी हुई मंज़िल की खोज
मिले ऐसे कि चाल मिल गई
हो ना सके एक दूजे से जुदा।
बढ़ चले एक अनजाने पथ पर
अपनी धुन में बन पहिए इक गाड़ी के हम।
धीरे धीरे कदम बढ़े थे जब तुम मेरे साथ चले थे,
जाने कितने लोग जले थे, जब तुम मेरे साथ चले थे
साथ हमारा, हम दोनों को ही हर्शाया था
ओझल हुए गर पल भर को भी
मन कितना तब घबराया था।
चुपके से आकर पीछे से
जब तुम मेरे गले लगे थे
झुरझुरी सी मन में उठी थी
जब जब तुमने आगोश भरे थे
धीरे धीरे और बढ़े जब तुम मेरे साथ चले
हसन रोना और मचलना
साथ तुम्हारे गिरना उठना
हाथ पकड़कर साथ दौड़ना
ऊंची नीची राहें बढ़ना।
जब जब छुआ तुमने कोमल कली को
बन गई फूल तुम्हारे आंगन का।
लद गई बगिया, महकी रंग बिरंगे फूलों सी
पेड़ हो गए बूढ़े अब तो क्या तुम अब भी साथ चलोगे
नहीं भाती तुमको हरियाली ना ही भाती खुशबू फूल की
वक्त आ गया जुदा होने का
पर क्या अकेले रह पाओगे
आज खड़ी अकेले सोच रही मै
क्या तुम मेरे साथ चलोगे
भले ही बूढ़े कमजोर हो गए
पर धीरे कदम बढ़ेगे गर तुम मेरे साथ चलोगे
अब भी जाने कितने लोग जलेगे
जब जब तुम मेरे साथ चलोगे।