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मेरे नानाजी थे प्यारे- प्यारे,
थे वह सब के दुलारे|
जब भी होता था अन्याय,
पहुंच थे बन के न्यायाधीश उनके|
थे वह बैंक के एक कर्मचारी,
स्वाभाव था उनका ब्रह्मचारी|
हस्ते थे वह मुछो पर हाथ रखकर,
तभी समज आती थी उनकी शरारत|
आवाज़ थी उनकी रुबाबदार,
नहीं था कोई उनसे समझदार|
नाम था उनका " सीताराम ",
नहीं छोटा था उन के लिए कोई काम|
आप से बहुत कुछ सीखना था,
दुश्मनो से पहले आपको ही ऊपर बुलाना था|
आपके जाने की खबर सुनकर सब कुछ गया था थम,
आपके बिना हो गया हैं सब कुछ कम|
अगले जन्म में बनकर मेरे ही नानाजी,
अगर न हो सका तो बन जाना मेरे ही पिताजी|

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