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वीरों में तू वीर महान, मेवाड़ की तू शान था,
हल्दीघाटी की रणभूमि में, रण का तू पहचान था।
घोड़ा चेतक साथ था, जैसे प्राणों की लड़ी,
धर्म, स्वाभिमान की खातिर, तूने हर पीड़ा सही।


अकबर जैसा सम्राट भी, तुझसे थर-थर काँप उठा,
झुका नहीं तू ज़ालिम के आगे, चाहे जीवन क्यों न लुटा।
वन-वन भटका, भूखा रहा, पर स्वाभिमान न छोड़ा,
त्याग दिए सुख-वैभव सारे, पर मातृभूमि को जोड़ा।

बांध के सिर पर केसरिया, तू वीरों की मिसाल बना,
जिसने इतिहास रच डाला, वो प्रताप अमर भला बना।
त्याग, तपस्या और बलिदान की तू गाथा कहता है,
हर भारतवासी के दिल में, प्रताप हमेशा रहता है।

तेरी गाथा है प्रेरणा, तेरे जैसी न दूजी छाया,
धरती धन्य हुई जिससे, वो प्रताप कहलाया।
झुके नहीं जो अन्याय के आगे, वो प्रताप सदा अमर है,
वीरता का यह दीपक, युगों-युगों तक प्रखर है।

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