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अम्बर तेरा आभूषण है।
वसुधा शक्ति तुम्हारी।
कालचक्र प्रत्येक अवस्था।
दृढ़ निश्चित है नारी।।

फलक मिलन का बिंदु रूप।
या नव सृजन तैयारी।
हर लोक सदा त्रिलोक सदा।
है निमित्त सर्वदा नारी।।

तुमसे है ब्रह्माण्ड सकल।
आधार सनातन तुमसे।
उदघोषक जीवन धारा का।
न कोई पुरातन तुमसे।।

तुम ही निर्मल धारा पीयूष।
जग प्राणवायु तुमसे।
खुद ही तुम युग परिवर्तक हो।
युग सारे हैं तुमसे।।

हे अखंड शक्ति सागर देखो।
तुम खुद अखंड वैरागी।
त्रिलोक अकिंचन दिखता है।
ढूंढूँ जो तुमसा त्यागी।।

संदेह नहीं तुम्हीं वसुधा हो।
नवयुग नवदीप वसुंधरा।
आधार सत्य जीवन पथ हो।
तुम्हीं उद्गम ओ परंपरा।।

हर रूप रंग रंगभूमि का।
उद्गम स्थान तुम्हीं से है।
जीवन,मन, रणभूमि का।
सारा सम्मान तुम्हीं से है।।

आदि अंत का बोझ लिए।
तन मन चिंतन कर भारी।
है दृढ़ निश्चित पर खड़ी हुई।
चिरकाल अटल है नारी।।

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