गुरु गंगा गुरु गीता गुरु बिन होए न ज्ञान।
मात पिता बंधु सखा गुरु गोविंद समान।।
गुरु की आज्ञा पालन करो सदा हे प्राणी।
गुरु गुरु तुम रटा करो गुरु ही सच्चा वाणी।।
गुरु कृपा कहही न जाई, गुरु बिना कुछ नाहीं।
गुरु हृदय शीश्य बसे,शीश्य गुरु मन माहीं।।
जो गुरु का मान राखे, वो सबकुछ ही पावे।
गुरु की दृष्टि दिव्य है,बैठी त्रिलोक दिखावे।।
आखर आखर बोल पड़े, जो गुरु मन लाई।
ढाई सवैया बैठे बैठे, पंचतत्व बन फुलाई।।
गुरु गंगा गुरु गीता, गुरु को अमृत जान।
गुरुवर गुरु गुड़ सा,नित करो रसपान।।
गुरु आदि अनादि है, गुरु अंत ना कोई।
जे गुरु ना जाने रे,ओकर कुछ ना होई।।
जैसे रवि उजाला दे, गुरु हरे अंधेर।
हे भु के भुपति,अब ना करो हां देर।।
जाओ गुरु मिल आओ, समय करे पुकार।
गुरुवर कृपा सब होए, होए सपन सकार।।
सकल विश्व ये माने,बिन गुरु ना ज्ञान।
रे मनमुरख अब तो,कर गुरु पहचान।।
मोह माया में फंसा, गुरु ना किन क़दर।
भटक रहा है क्यों,अब भी दर बदर।।
हानि लाभ निरेखे,करे ना गुरु का संग।
मिट्टी मिट्टी बन जाए,रहे ना सोना अंग।।
काल अकाल एक, गुरु चाहे तो टारे।
फिर भी है मुर्छित, क्यों ना खुदि उबारे।।
क्यों सोचे है इतना, जो गुरु सम्मुख।
धर चरण रज गुरु,माथ हाथ दे सुख।।
दुःख ना दुःख रहे, जो गुरु मन मोहे।
कारी बदरी बरसे,चित मधु बन सोहे।।
मात् पिता बंधु सखा, गुरु कई रुप।
गर्मी में जो छांव हैं,जाड़ा में हैं धुप।।
हे मानस के प्रिये, गुरु मानों हैं सब।
इनसे ना हैं जुदा, जो तेरे मेरे रब।।
गुरु हैं ज्ञान माला,फेरत ही ज्ञान होए।
आंख खोल रे वंदे, क्यों अभी तक सोए।।
निर्मल करे जो सरिता,तासी गुरु महान।
हर हर गुरु हरे हरे,वेद पुराण समान।।
पता पता जो डोले, गुरु भरें प्राण वायु ।
जे पे गुरु कृपा, उसकी बढ़े मान आयु।।
पतझड़ बने बसंत,कि मौसम हो बहार।
गुरु शीष नवा ले,दिन जीवन के चार।।
गागर में सागर भरें, भरें उत्तम विचार।
जो गुरुवर चाहें, खतम करें विकार।।
पल में प्रलय होत है, गुरु दीन उबारी।
गुरु गुरु जो भजै सदा,टरै विपदा भारी।।
ये देह माटी सना, गुरु गढ़े ज्यों कुम्हार।
गुरु हृदय राखिए, गुरु करै सब पार।।
आनी जानी शेष है, विशेष गुरु विचार।
जो जन झुके गुरु के,होए जय जयकार।।
गुरु वाणी गुड़ है, और मिस्री की डाल।
रे मनमुरख मान, गुरु करै है निहाल।।
गुरु गुरु जो करे, गुरु ना छोड़े उन हाथ।
गुरु कृपा जो मिले, बने है बिगड़ी बात।।
खुद जाओ खुदि भुल, गुरु ना सुध बिसारो।
जो गुरु ने चाहा,कर देनी दो से तोहे चारो।।
मोह माया अज्ञान,काटे गुरु दे ज्ञान।
गुरु गुरु सद्गुरु, जगद्गुरु जग जान।।
गुरु बरसाए मोती, गुरु गुण की खान।
जो पावे गुरु कृपा,बन जावे वो महान।।
गुरु उर अन्तर्यामी, गुरु करे कल्याण।
अब तो मान भी जा,रे मुरख नादान।।
गुरु मेरो मन मोहे,भाए गुरु जी इतना।
मैं राधा बन नाचूं,नचाए जूं हां किसना।।
गुरु मुख मुस्कान ,सब सुख दीन्ही।
काज करत कछु, आशीष त लिन्ही।।
भज गुरु मन मना, गोविन्द गोपाला।
माया नगरी में मन, है गुरु रखवाला।।
करमन की बात नहीं, जो गुरु हैं कर्ता।
दुःख हरते गुरु सब, हैं गुरु सुख भर्ता।।
निज मन दास बना, गुरु मन मालिक कर।
चिंता फिकर फिर,मिट जावेगा हे रहवर।।
गुरु कृपा बड़ी, और गुरु वाणी सयानी।
पार लगा वो, बात जो ये दिल से मानी।।
दिल लगा गुरु से,औरन को दे छोड़।
हे मन मूरख,नाता गुरु से ले जोड़।।
अरे गुरु हैं सारे,सुख के तो आधार।
पार लगाते वहीं, वहीं करें बेड़ा पार।।
गुरु की महिमा,जग में बड़ा है भारी।
गुरु करें उपकार,रे गुरु हैं उपकारी।।
हो जो कोई ग़लती, क्षमा करें गुरुवर।
सच्चे मन से तुम,बस पांव लो पकड़।।
गुरु से कभी ना तुम,बैर भाव हां रखना।
तेरे हैं जी तेरे, गुरु का मान तुम रखना।।
गुरु गुरु हे गुरु हे गुरु मेरे सद्गुरु।
जीवन नैया आप ही हाथे हे गुरु।।