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इक शाम को इक सुबह का इंतजार था।
रात का घना साया अंधेरा बेशुमार था
ये रात ढलेगी, फिर आयेगी इक सुबह
हमे यकीन था, उम्मीद थी, एतबार था।
ताउम्र सरे शाम हम इस कश्मकश में थे,
उनका भी दिल ए नादां, शायद बेकरार था।
आहिस्ता आहिस्ता हम यूं खामोश हो गए।
कुछ इस कदर जिंदगी का गम बेहिसाब था।
इक रात मुझे चांद से उनकी खबर मिली।
मैंने सुना कि वो भी इश्क ए बीमार था।
इक अजनबी शहर में इक आदमी मिला।
गैर था मगर जैसे कोई खास रिश्तेदार था।
इस उम्मीद के सहारे मैने जिंदगी गुजार दी।
वो मिलेगी मुझको, मुझे उसका इंतजार था।
मै थक चुका था जिंदगी भर गम उठा उठा,
फिर जिंदगी ने कहा तेरे नाम इक और गम उधार था।
इक शाम इक शख्स ने मेरे दिल का मिजाज पूंछा।
क्यों वो दिल तन्हा है जो कभी शहर ए यार था।
इक शाम वो मेरे घर आए मैने खूब मेहमाननवाजी की,
उनके खातिरदारी के लिए में भी खूब खबरदार था।
इस खुशफहमी में वो हादसे का शिकार हो गया,
वो जब लुटा मुसाफिर, साथ पहरेदार था।
अब वो जुदा अब मै जुदा अब रास्ता जुदा,
मुझको इस बात का, एक अर्से से आसार था
वो जिंदगी के साए से कभी हमसाया न हुए,
जिंदगी में न आना, उनका बहाना हज़ार था
ये टूटे ख्वाब, ये टूटा दिल, ये टूटी उम्मीदें,
मैं इनका भी शायद उम्रभर गुनहगार था।
ये आखिरी किश्त थी उनके मुहब्बत ए तलाश की,
इस आखिरी किश्त तक मै उनका कर्जदार था।
मैने भी पेश की थी उन्हें नाचीज इस दिल की सौगात,
उनकी पाक मुहब्बत का मै भी तो हकदार था।
दर्द ए जिंदगी की इक तस्वीर मैने देखी थी,
इक शाम इक उदास दिल, दिल गम ए गुबार था।
इक शाम को इक सुबह का इंतजार था...