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जय गणेश गिरजासुअन,
मंगल करन महान।।
प्रथम पूज्य प्रणाम प्रभु,
देव करत गुण गान ।।
विघ्न विनाशक मंगल कारी।
सुन लीजे प्रभु अरज हमारी।।
पंचदेव अस्थान तुम्हारा।
दया दृष्टि बने काज हमारा।।
मूसक वाहन तुम्हें प्यारा।
मोदकप्रिय आहार तुम्हारा।।
लम्बोदर गण नायक स्वामी।
विघ्न हरों हे अन्तर्जामी।।
कर्ण विशाल सोहते भारी।
गज आनन की मूर्ति प्यारी।।
तिलक भाल सिन्दूर सुहाये।
नृत्य गीत वादन तुम्हें भाये।।
कण्ठ हार उर पीत जनेऊ।
निज भक्तों की तुम सुध लेऊ।।
सुमुख सलोने शुभ फल दाता।
एकदन्त कपिलो कहलाता ।।
गज कान आनन प्रिय लागे।
लम्ब उदर विकट भय भागे।।
विघ्न विनाशक गण के स्वामी।
धूम केतु सिर शशिहि सकामी।।
बारह नाम जप माह चतुर्थी।
फल पावत है यहाँ अभ्यर्थी।।
भादो माह चौथ तिथि आई।
शुक्ल पक्ष सिंह लग्न सुहाई।।
नक्षत्र स्वाति दिन सोमवारा।
मध्याह्न काल आप अवतारा।।
कहें विनायक इसका नामा।
गणपति दर्शन करहु ललामा।।
तुलसी पत्र गणेश ना भावे।
गणपति पूजा में ना लावे।।
लेखक महाभारत विख्याता।
वेद व्यास ताके हि रचयिता।।
सिद्धि विनायक सिद्धि दाता।
जो जन ध्याता सो फल पाता।।
पार्वती प्रिय पुत्र कर पावन।
जन गण मन सभी हि को भावन।।
मंगलवार को चतुर्थी होई।
जन अंगारक नाम कह सोई।।
यदि रविवार चतुर्थी होई।
अति शुभ तिथि कहें सब कोई।।
देकर अर्घ्य पूजता जोई।
सदा सुमंगल ताकर होई।।
मणि स्यमंतक कथा सुहावन।
शशि कर दरश कलंक नसावन।।
सैंदुर तिलक दूर्वा प्यारी।
बाल रूप की छवि अति न्यारी।।
श्री कृष्ण व्रत गिरजा कीन्हा।
तब अवतार आप प्रभु लीन्हा।।
द्वार बिठाया कर रुचि रचना।
प्रवेश निषेध करो मम वचना।।
शिव सम्वाद अनेक प्रकारा।
तब भी नहि पायो इन पारा।।
परसुराम प्रवेश ना पाई।
एकदन्त से भई लड़ाई।।
कार्तिकेय के आप सुभ्राता।
रिद्धि सिद्धि के पति कहाता।।
लाभ क्षेम तुम्हरें सुत स्वामी।
चरण कमल बहु बार नमामी।।
श्री गणेश कारज आरम्भा।
विघ्न विनाशक करें अचम्भा।।
मंत्र गणेश गायत्री जपना।
पूरे होते इससे सपना।।
गणपति की महिमा अमित।
को कवि कहें बखान।
जय जय जय गणराज प्रभु।
पूजें सकल जहान।।