Image by Joshua Choate from Pixabay

आँगन में उगे पेड़ को,
सम्मान की अपेक्षा नहीं।
बहाकर पवन दे सबको ख़ुशी,
करता किसी की उपेक्षा नहीं।।

सूरज से पा पवित्र प्रकाश,
तपता निरंतर ऋषि समान।
विनम्रता विशेष गुण बनाती,
इसके चरित्र को अति महान।।

पोषण करता स्व तन-मन का,
रखता न द्वेष किसी के प्रति।
किसी सद्महात्मा की तरह,
पहुँचाता नहीं कभी कोई क्षति।।

यह सह- सह झंझावात सदा,
महसूस करे नहीं दर्द कभी।
परमार्थ की धुन मन में धारे,
सह जाये ऋतु की मार सभी।।

योगी सम पेड़ प्रसारित करे,
जन-मानस को दो सद्शिक्षा।
फल देने से तुम मत हिचको,
याचक को देते रहो भिक्षा।।

.    .    .

Discus