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सागर मंथन में किया, सुर अरु असुर प्रयत्न।
फल स्वरूप उससे मिले, सुन्दर चौदह रत्न।।

उसमें ही निकला कलश, जो था अमृत पूर्ण।
जिसको पाने को विकल, देव-दनुज संपूर्ण।।

इस अमृत के कलश पर, युद्ध करे दोउ वीर।
बारह दिन तक था चला, युद्ध बड़ा गम्भीर।।

इसी युद्ध में कलश से, छलके अमृत बिन्दु।
चार जगह पर थे गिरे , वहीं पे लगता कुम्भ।।

हरिद्वार, उज्जैन में, नासिक और प्रयाग।
कुम्भ तो चारो नगर में, आन जगाए भाग।।

महा कुम्भ पर एक में, जहाँ का संगम नाम।
गंगा , यमुना, सरस्वती, सबके बनाएँ काम।।

छह वर्षो में जो लगे, अर्ध कुम्भ कहलाए।
बारह वर्षो में जो लगे, पूर्ण कुम्भ हो जाए।।

इनमे कर स्नान जन, सहज मोक्ष पा जाएँ।
पापी के कट पाप सब, भव बन्धन कट जाएँ।।

हमारा ये भारत है," पावन पवित्र कुंभ का देश।
सनातन है धर्म हमारा, मानवता का देते संदेश।।

पावन धाम प्रयागराज में है, महाकुंभ का मेला लगता।
जहाँ मानव महरामण का है, बड़ा ही जमावड़ा होता।।

त्रिवेणी में कुंभ का स्नान, मोक्षदायी है कहलाता।
देश विदेश से हर सनातनी, दौड़ा दौड़ा है आता।।

संस्कार और संस्कृति की, दिखती है झलक यहां पर।
श्रद्धा और आस्था की, फहली हुई है महक यहां पर।।

गंगा-जमना- सरस्वती संगम की, यहां बहती है धारा।
महाकुंभ के मेले का दिखता है, बड़ा अद्भुत नज़ारा।।

साधु- संत,भक्त- श्रद्धालु सब यहां एकत्रित होते हैं।
बड़ी श्रद्धा से संगम में स्नान करके अपने पाप धोते हैं।।

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