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काट-काट कर पेड़ों को
क्यों सूर्य की तपिश बढ़ा रहा ,
अपने सुख की खातिर मानव तू
दूसरे का आशियां उजाड़ रहा,
आंधी,पानी, तूफ़ानों में
मेरे तिनके ही काम आयेंगे,
ये ऊंचे-ऊंचे महल तुम्हारे,
मिट्टी में मिल जायेंगे
मानव से प्रकृति का रिश्ता,
क्यों स्वार्थ की खातिर तोड़ रहा
अपने सुख की खातिर मानव तू
दूसरे का आशियां उजाड़ रहा |
माना कि तू शक्तिशाली है
तूने शेर का है किया शिकार
तू नन्ही सी मधुमक्खी पर
हल्का सा करके देख वार
जीवन कहाँ फिर पायेगा,
जो प्रकृति से तू खेल रहा,
अपने सुख की खातिर मानव तू,
दूसरे का आशियाऺ उजाड़ रहा