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संस्कारों का आचरण जिसने सिखाया|
सरल सफल आचमन का पथ जिसने दिखाया|
स्थल संचलन कर्म में अंतर जिसने बताया|
पिता के रूप में उनको मैंने पाया||
उद्यमी प्रकाशन सयोंग संचालन से परे हैं वो|
ममता से मेरे लिए आंचल भरे हैं वो|
जिन्होंने गलत सही मुझे सिखाया|
कठिन हालात में जो डगमगाई हूं तो हांथ में हाथ अपना थमाया||
खुद के के लिए ना था वक्त उन्हें|
अधिकतर काम में समय उन्होंने बिताया था |
लोगों साथ कनेक्ट रह हमेशा खुशी बाटी|
फिर भी कहीं ना कहीं जिम्मेदारियों का ऋण ही पाया था||
खुशी चेहरे पर लेकर जब ऑफिस से आते थे|
मानो फैमिली देख सारे गम पापा भूल जाते थे|
छोटे में मैंने पापा को हमेशा बेफिक्र ही पाया था|
बड़ी हुई तो समझ आया दुनिया सा बोझ जिम्मेदारियों के रूप में उन्होंने कंधो पर अपने उठाया था||
गलत है या सही समय,ये फर्क करना उन्होंने ही तो मुझे सिखाया था|
एक दोस्त एक पिता एक पति एक बेटा हर रूप में बखूबी उन्होंने फर्ज अपना निभाया था||
स्वर सृजन से प्रारंभ हुई दुनिया का आभार प्रकट|
पिता के रूप में मेरे लिए हुआ मानो उनका सृजन|
पूरा जीवन किया उन्होंने हम पर समर्पित|
आज ये वक्त करते हैं हम उनको अर्पित||
अब वो खोया हुआ वक्त वो जी पाएंगे|
साथ हमसफर के फिर बेफिक्र हो खुल कर हस पाएंगे|
आज ये retirement का वक्त आया है|
हम उनका सम्मान कर उनके स्वाभिमान को फिर बढ़ाएंगे|
आज फिर वो अपने कर्म से अपना स्वाभिमान पाएंगे|
आज फिर वो अपने कर्म से अपना स्वाभिमान पाएंगे|