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नित नव्य किशोरी धरा, छटा विचित्र पाई है,
शरत्काल श्यामा सुंदरी यौवन ने ली अंगड़ाई है,
स्नेही रवि ने पुष्कर पर मोहक छवि बिखराई है ,
सूर्य रश्मि ने भी कान्तिमय स्वर्णिम चुनरी फैलाई है|

मस्तक तिलक ले वसुधा अधिपति अकुलाई है,
मलय मारूत मिलन आतुर शीतलाता को आई है ,
कलरव ध्वनि मन मोहिनी भिनसार लज्जाई है,
सुमधुर गान विहंग नाद चारु ने शोभा दिखाई है|

वन उपवन रंग बिरंग निज नविन आनंदित पसराई है,
भाँति भाँति सारंग,भाँति भाँति कोकर देखो मुस्काई है ,
धरा पर नन्हे द्रुम ने देखो कैसे नई स्फूर्ति दर्शाई है,
सुगम पयस्विनी नवयौवना सी देखो कैसे इठलाई है|

रजत सदृश्य मोहक सुगंधित तीव्र वायु सनसनाई है,
अंग अंग अभिभूत सा कैसी विहान प्रेयसी शर्माई है
पग पग सौम्यता लिए चहुँ ओर भोर प्रिया सी छाई है ,
समागम क़ो आतुर शरद नवयौवना वधु द्वार पर आई है।

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