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एक छेद रोज करता अंबर में,
मैं भी हथौड़ावादी हूं
रोज तोड़ता पथ पत्थर को,
मैं भी मांझी हूं।।
अविचलित, अविराम यात्रा मेरी,
मै उस नभपथ का अनुगामी हूं।
रोज तोड़ता पथ पत्थर को,
मैं भी दशरथ मांझी हूं।।
नख से सिख तक सरसैय्या पर,
भीष्म तरह प्रतिज्ञाधारी हूं।
लथपथ हूं पर फिर भी नभपथ हूं,
मैं अघोरपंथ त्रिपुरारी हूं।।
नजर भर दिखती मत्स्य आंख,
अर्जुन सा मैं धनुर्धारी हूं।
रोज तोड़ता पथ पत्थर को,
मैं भी दशरथ मांझी हूं।।
स्वयं का पीकर रक्त रोज मैं,
मांस स्वयं का खाता हूं।
स्वयं कृष्ण हूं, स्वयं हूं अर्जुन,
मै गीता का सार सुनाता हूं।।
कृष्ण सखा सारथी है मेरे पर,
स्वर स्व मन का मैं सारथी हूं।
रोज तोड़ता पथ पत्थर को,
मैं भी दशरथ मांझी हूं।।
त्रिकालदर्शी शिव के समान मैं,
निरंतर त्रिकाल साधना करता हूं।
रोज सुबह मैं जीवित होता,
हर रोज रात्रि मैं मरता हूं।।
बन के वो गिलहरी रामसेतु को,
मै उस रामसेतु को बांधने में सहभागी हूं।
रोज तोड़ता पथ पत्थर को,
मैं भी दशरथ मांझी हूं।।
इक छेद रोज करता अंबर में,
मैं प्रचंड हथौड़ावादी हूं
रोज तोड़ता पथ पत्थर को,
मैं भी दशरथ मांझी हूं।।

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