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जिस मिट्टी ने लहू पिया, वो फूल खिलाती जाएगी।
कांटों के संग में रह-रह कर फूलों सी अपनी खुशबू से हर आंगन को महकाएगी।।देखकर खिल जायेगा सबका मन अपने आकर्षण से हर दिल में जगह बनाएगी।खिलती धूप सी मुस्कान को पाकर सबके जीवन को रोशन वो बनाएगी।।
शुद्ध हवाओं में लहरा कर अपने सौंदर्य से सबके मन को लुभाती जाएगी
लचकती डाली सा इठलाकर घने तूफान आँधियों से लड़ती जाएगी।।
ओढ़ ओस की चादर तन पर हर गम को अपने आँसुओं से धोती जाएगी।
खड़ी अकेली खिलते फूल सी आँगन में सोच-सोच कर

 एक दिन जिंदगी से थक सी जाएगी।।
इस दुनिया की दीन दशा देखकर पल-पल मरती जाएगी।
जब-जब तोड़ा काटा जाएगा उस नाजुक सी कली को
चीख-चिल्ला कर थककर मौन बैठ वो जाएगी।।
मुरझाकर हालातों के तले वो दबकर अपने अस्तित्व को फिर भी बदल न पाएगी।
फिर अपने आत्मसम्मान की खातिर रणभूमि में लोट कर वापिस आएगी।।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वो फूल खिलाती जाएगी।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वो फूल खिलाती जाएगी।।

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