Image by Gerd Altmann from Pixabay
उन्हे लगता है कि मैं मुहब्बत में दिल जलाए बैठा हूं।
उन्हे क्या मालूम कि मैं दिल को, मशाल बनाए बैठा हूं।
अब सुलगा रहा हूं तो धुंआ धुंआ तो होगा ही,
वक्त का इंतजार है जो मै खुद को यूँ सुलगाए बैठा हूं।
मुझे यकीन है इक रोज मेरी लपटें चूमेंगी असमान,
मैं अर्से से अपने अंदर इक ज्वालामुखी दबाए बैठा हूं।
मैं बागी हूं मेरा काम है बगावत करना,
मैं अपने अंदर इंकलाब की इक मशाल जलाए बैठा हूं।
बहारें आएं या न आएं मुझे कोई फिक्र नहीं,
मैं तो समंदर की आग हूं, समंदर में आग लगाए बैठा हूं।
जिसे जाना हो महफिल ए चांद वो जाए शौक से,
मैं तो दरिया के बीच कश्ती लिए तूफान बुलाए बैठा हूं।
मुझे पता है कि जमाना नाराज है मुझसे
जो इक कदम और जमाने से आगे बढ़ाए बैठा हूं।