उर में सुन्दर भाव रखो,तज दो मन अभिमान,
पीड़ा औरों की समझें,मानव वह धनवान।
वही जीतता है जग में,साहस जिसके पास,
सुन्दर संगति कर्म से,पूरी होती आस।,
चार दिवस की जिन्दगी,काहे का अभिमान,
कर लें हम कुछ कर्म भले,ऊँची होगी शान।
अपनी मेहनत कर्म से,लक्ष्य पाय हर कोय,
भाग्य भरोसे बैठकर,जीवन सफल न होय।
कठिन वक्त बतलाता है,भले बुरे सम्बंध,
स्वार्थ में टूटें और बनें,नित्य नये अनुबंध।
काँटों बीच फूल हंसकर, बिखराते हैं सुगंध,
जल बिच मीन रहे हरदम,फिर भी है दुर्गंध।
पाहन कितना भी घिसो,पत्थर ही कहलाय,
मन्दिर में शोभित तो बन,भगवन पूजा जाय।
है महत्व स्थान का,चाहे वस्तु हो कोय,
माटी मिले तो जल कीचड़,सीप में मोती होय।
बैरी और हितैषी की, है विपत्ति पहचान,
सुख में तो सब साथ चलें,दुख में हैं अंजान।
साथ सदा जो सुख दुख में,वही है सच्चा मीत,
सौ में एक रिश्ता सच्चा,तो हो जाती है जीत।
गुण दोषों से हसी भरा,यह सारा संसार,
जिसकी जैसी चित्त मति,गृहण करे है सार।।
परोपकार है धर्म बड़ा,मानवता का मर्म,
करुणा दया का भाव,यह सार्थक करता कर्म।
जीवन में संस्कार हों,मानव का उददेश्य,
सूरज चंदा विटप नदी ,सबका यह उपदेश।
प्रकृति सिखाती है सदा,परहित और उपकार,
अन्न खिलाएं भूखों को,भटकों को दें राह।।
मिटे अशिक्षा अँधियारे,फैले ज्ञान प्रकाश,
दिनकर का संदेश सुखद,चमके है आकाश।
चंदन घिसकर महकाता,हाँथों को हर बार,
पुष्प लुटाते सुन्दरता,गूँथकर बनते हार।।
दिव्य गुणों का दर्शन है, मानव का उपकार,
बन महान छूलें गगन,धरती करे पुकार ।।
उर में सुन्दर भाव रखो,तज दो मन अभिमान,
पीड़ा औरों की समझें,मानव वह धनवान।।