बीस भुजा दस शीश कटे,
रावण के कुछ अवगुण खातिर।
वरना उस सा विद्वान ना था,
अवगुण ने बना दिया शातिर।।
शिव भक्ति में लीन रहा,
वेदों का ज्ञाता था भारी।
अहंकार के मद होकर,
सारी मति गई मारी।।
सीता हरण सा दुष्कर्म,
करके वंश मिटा डाला।
सोने की लंका भी खोई,
सारा सम्मान गंवा डाला।।
बुराई कितनी हो लुभावनी,
अंत विनाश ही होता है।
बलशाली रावण जैसा भी,
चिर निंद्रा में सोता है।।
विजय सत्य की हुई सदा,
असत्य है सदा हारा।
यही संदेश लिए आता,
विजयदशमी या कहो दशहरा।।
सिर्फ पुतला जलाना ही,
दशहरा नहीं होता।
अपने अवगुण जला डालो,
उद्देश्य तभी सफल होता।।
मिटा डाले अज्ञान के,
अंधेरे को आओ सभी।
समझे इस संदेश को,
ना भटके राहों से कभी।।
राम बने और भीतर बैठे,
रावण को मिटा डाले।
अपने बिखरते हुए समाज को,
आओ सभी मिलकर संभाले।।
क्यों अवगुण खोजें दूजे में,
जीवन अनमोल गंवाए हम।
खुद के भीतर झांक सके,
अपने अवगुण मिटाएं हम।।
जब राम सभी में जाग गया,
रावण स्वयं मिट जाएगा।
कलयुग में भी चमत्कार से,
राम राज्य बन जाएगा।।