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इस अगस्त के महीने की शुरुआत मे ही ऐसी घटना सुनने को मिली जिससे एक लड़की होने के नाते दिल दहल गया! पर सिर्फ लड़कियों के नहीं हर उस व्यक्ति के जो कि वास्तव मे एक सच्चा इंसान है उसका कलेजा फटना चाहिए इस बात से ये घटना ही कुछ ऐसी है. छत्तीस घंटे की ड्यूटी करने के बाद मेडिकल कॉलेज के ही सेमिनार हॉल में आराम करने गयी छात्रा के साथ बलात्कार के बाद क्रूरता से की गयी हत्या, इतनी लाइनें क्या काफी नहीं है हर इंसान के रोंगटे खड़े कर देने के लिए?

इस खबर को सुनने के बाद मन वही अटक गया है कभी कभी लगता है कैसे होंगे डॉक्टर मोमिता के आखिरी क्षण? क्या हाल होगा उन माँ बाप का जिन्होंने अपनी बेटी की छिन्न भिन्न अर्धनग्न लाश को देखा? क्या कोई भी उसकी भरपाई कर सकता है?

नारी को देवी, दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती जैसे पवित्र नामों से संबोधित करने वाले समाज की ये कोई नयी परंपरा नहीं है ये बलात्कार जैसे घृणित जुर्म हमारे समाज मे सालों से चले आ रहे हैं, ना जाने कितनी ही बेटियाँ इसकी चपेट में आ चुकी है फर्क़ बस इतना है कुछ केस पूरे देश में चर्चा का विषय बन जाते हैं और कुछ दफन कर दिए जाते हैं पर दोनों ही सम्बंध में कभी पीड़िता को न्याय नहीं मिला! रोज ना जाने कितनी बेटियाँ बलात्कार की शिकार बनतीं है फर्क़ बस इतना है निर्भया और डॉक्टर मोमिता जैसे केस जहां अखबारो मे चर्चा का विषय बनते हैं वही बहुत से केस तो हम जानते भी नहीं है.

बलात्कार की सारी जिम्मेदारी लड़कियों के छोटे कपड़ों और चरित्र पर डालने वाले समाज को अब आँख खोलने की जरूरत है, डॉक्टर मोमिता के केस में ही देखे तो क्या उन्होंने छोटे कपड़े पहन रखे थे? या फिर वो रात में बाहर घूम रही थी? वो तो बस ड्यूटी निभा रही थी, उसकी गलती बस इतनी सी थी कि वो आजाद तितली थी अपने घर की चिराग! जो डॉक्टर बनकर अपने माता पिता का नाम रोशन करने वाली थी. क्या इस बलात्कार मे भी हमारा अंधा समाज डॉक्टर मोमिता के रात को ड्यूटी करने को गलत कहेगा? या फिर वो उन्हें ये कहकर दोषी करार देगा कि लड़कियाँ बस चूल्हे चौके तक ही अच्छी लगती है उन्हें हक नहीं है पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का! तो ऐसे समाज को मैं ये बता दूँ कि लड़कियों को घर की चारदीवारी तक सीमित रखने वाले ही फिर अपने घर की औरतों की जचगी के समय के समय महिला डॉक्टर ढूँढते है.

डॉक्टर मोमिता भी बस यही कर रही थी लोगों की सेवा कर रही थी, लोगों की जान बचा रही थी उनकी गलती बस यही थी, आज बलात्कार की घटनायें कहा नहीं सुनायी देती घर की चारदीवारी मे भी लड़कियाँ इसकी शिकार है. ख़बरें सुने तो दो वर्ष की बच्ची से लेकर 60 वर्ष की बुजुर्ग महिला तक सुरक्षित नहीं बची है, क्या इसमे भी गलती उनकी है? ज्यादतर बलात्कार के किस्से तो कभी कागजों में उतारे ही नहीं गए ना ही वो हिस्सा ले पाए लोगों की चर्चाओं में और जो चर्चा का विषय बने वो भी कितने दिनों के लिए? कुछ तितलियों के पंखो को कतरने के बाद दरिंदों ने उन्हें मौका ही नहीं दिया इस दुनिया में जीने का! और जो बलात्कार के बाद जिंदा बच गयी उन्हें जीते जी मार दिया हमारे अंधे समाज ने.

मेरे दृष्टिकोण से देखे तो लड़कियों और तितलियों मे ज्यादा फर्क़ नहीं होता तितलियों के पंखों के तरह ही लड़कियों के सपने भी होते हैं कई रंगों से भरे हुए, तितलियों की तरह लड़कियाँ भी उड़ना चाहती है पर ये समाज उनकी उड़ान देख ही नहीं सकता. हमारे समाज में लड़कियों को बचपन से ही कहानियां सुनायी जाती है जिसमें घोड़े पर बैठा राजकुमार आता है और उन्हें ले जाता है अपने संग और पूरे करता है उनके सारे सपने, ये सब तो ठीक है पर अब समय आ गया है जब बेटियों को परिकथाँए नहीं दैत्यकथाँए सुनायी जाए जिसमें घोड़े पर बैठा राजकुमार नहीं मासूम तितलियों के पँखों को कतरने वाला दरिंदा रहता है.

हमारे देश के अंधे कानून ने ये साबित कर दिया है कि वो अंधा ही है निर्भया के दोषियों को इतने सालों बाद फांसी देना संतोषजनक नहीं लगा, और बाकियों को तो वो भी नहीं मिलती, जी हाँ हम उसी देश मे रहते हैं जहां बिल्किस बानो के आरोपियों को फूलों की माला पहनायी जाती है. इतना सब होने के बाद कानून से कुछ उम्मीद नहीं है मुझे आज तक ये नहीं समझ आया हर क्षेत्र में महान हमारा देश बलात्कार के आरोपियों को लेकर इतना ढीला क्यूँ है? कहीं ना कहीं इसकी वजह हमारा समाज भी है! कभी सोचा है डॉक्टर मोमिता के लिए न्याय मांगने वाला समाज उन्हें किस नजरिये से देखता अगर वो बलात्कार के बाद जिंदा बच जाती तो? कई बेटियाँ बलात्कार के बाद इस दुनिया से चली जाती है और जो जिंदा बचती है उन्हें हमारा समाज मार देता है.

बलात्कार के बढ़ते मामलों से इतना डर फैल चुका है मन में लगता रहता है कहीं अगले हम तो नहीं? आज देश की हर लड़की खुद को असुरक्षित महसूस कर रही है? सोचिए क्या हाल होगा उन डॉक्टर और नर्स का जो अब रात में ड्यूटी करेंगे? क्या वो सुरक्षित महसूस करेंगे? बलात्कार के बढ़ते मामलों की वजह हमारा कानून है जिसने बलात्कारियों के लिए कड़ी सजा नहीं रखी, मेरा मानना है बलात्कारियों को आम जनता के बीच ही अंग भंग करना चाहिए या जिंदा जलाना चाहिए ऐसी सजा देनी चाहिए जिससे समाज के बीच पल रहा हर एक अपराधी काँपने लगे! हर एक इंसान को खुद से पूछना होगा अभी नहीं तो कब? क्या आप सबके अंतर्मन मे डॉक्टर मोमिता या किसी भी उस तितली की छवि नहीं आती? अगर नहीं आती तो इंसान के नाम पर बस हाड़ मांस के पुतले हो आप?

आज डॉक्टर मोमिता और हर वो तितली सवाल पूछती है हम सब से क्या गलती थी उनकी? यही कि वो एक क्रूर दुनिया में लड़की बनकर पैदा हुई? क्या उन सबका हक नहीं था अपने अपने हिस्से का आसमान नापना? जो उनके पंखो को बीच उड़ान मे ही कतर दिया गया? अगर हमे बलात्कार कम करने है तो हमे सबसे पहले बलात्कारियों के लिए कड़क कानून व्यवस्था बनानी होगी, इतनी लचर कानून व्यवस्था से कुछ भी नहीं होने वाला है!

दूसरी बात आज बलात्कार के बढ़ते मामलों की जिम्मेदार है अश्लील वीडियो की साइट्स, बॉलीवुड की तथाकथित फ़िल्में उदहारण के तौर पर एनिमल और कबीर सिंह जैसी फ़िल्मों से आज के कच्ची उम्र के किशोरों का मन कहा जा रहा है ये हम साफ तौर पर देख सकते हैं. बॉलीवुड की फ़िल्मों मे डाले जाने वाले आइटम नंबर भी इसके जिम्मेदार हैं जिनमे एक लड़की को वस्तु की तरह पेश किया जाता है, हमारे समाज में लोगों द्वारा शौक से दी जाने वाली माँ बहन की गालियाँ भी इसकी प्रमुख वजह है! कभी हमने ध्यान नहीं दिया पर यही से बलात्कारी आगे बढ़ते हैं जो माँ बहन की गालियाँ सुनते और देते रहे हैं उनकी नजरों में औरतों की क्या ही इज़्ज़त होगी? बाकी हमारे समाज के विचार जो लड़की और लड़के मे हमेशा भेदभाव करता आया वो तो प्रमुख है ही.

मोदी जी ने नारा दिया था बेटी पढाओ बेटी बचाओ आज वो नारा हम सबके लिए बदलकर बेटा पढाओ बेटी बचाओ बन गया है, बेटियों के माँ बाप ने उनके जन्म लेते ही उन्हें तरह तरह की बातें सिखाई क्या यही जिम्मेदारी अपने बेटे के जन्म पर ली? आज बेटी के माँ बाप से ज्यादा एक बेटे के माँ बाप की ज़िम्मेदारी बनतीं है आप अपने बेटे को बचपन से अच्छे संस्कार दे जिससे कल को आगे चलकर किसी मासूम तितली के पर ना नोचे! अक्सर हमारे समाज में बेटियों के माँ बाप उनके जन्म से ही खुद को बड़ी जिम्मेदारी मे बांधने लगते हैं जरूरत है तो बेटों के जन्म के समय से ही खुद को जिम्मेदारी मे बाँध लेने की जिससे वो आगे चलकर हर स्त्री का सम्मान करे.

अंधेरा होते ही बेटियों को घर से निकलने ना देना, उनसे सवाल करना वो कहा जाएँगी? किसके साथ जाएंगी? ये सब सवाल क्या लड़कों से करने की जरूरत नहीं है? अंत में यही कहना चाहूँगी अपनी लड़कियों को सिर्फ घोड़े पर बैठे राजकुमार की परीकथाएँ ही नहीं मासूम तितलियों के परों को नोचने वाले दरिन्दे की प्रेतकथाएँ भी सुनाये, उन्हें बचपन से ही आत्मरक्षा की शिक्षा दे, बाजारों में लड़कियों की सुरक्षा हेतु चाकू, स्प्रे वगैरह उपलब्ध है वो सारे समान उनके साथ हमेशा दे. किसी दरिन्दे की कहानी सुनकर अपनी तितली को उड़ने से ना रोके वो सृष्टि की देन है उन्हें उन्मुक्त उड़ने दे बस पूरी सावधानी के साथ! लड़कों से जैसे मजबूत होने की अपेक्षा रखते हैं ठीक उसी तरह बेटियों को भी शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाये, उन्हें सिखाये वक़्त पड़ने पर अपनी रक्षा के लिए सामने वाले की जान लेने से भी ना चूके.

अंततः सबसे बड़ी बात! बेटे को पढ़ाये और बेटियाँ बचाए, कहने का तात्पर्य है कि बेटियों को संस्कार सिखाने वाला समाज जिस दिन बेटों को भी बचपन से ही संस्कारों मे ढालने की कमर कस लेगा उस दिन बलात्कार खत्म हो जाएंगे. बलात्कार होने की वजह लड़कियाँ नहीं है उसकी असल वजह तो बलात्कारी की मानसिकता है, सोचिए कैसे मानसिकता होती होगी उनकी जो किसी लड़की के साथ दरिंदगी करते हैं! इसलिए जिम्मेदारियां सिर्फ लड़कियाँ लेकर नहीं आती लड़के भी जन्म के साथ जिम्मेदारियां लेकर आते हैं, हम उनमे अच्छे संस्कारों के बीज बोये जिससे वो श्री राम जैसा चरित्र पा सके ना कि रावण सा. 

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