"कुछ पन्ने इतिहास के मेरे
कुछ मेरा अफसाना है।
इस माटी का लाल यहीं पर
यही तो अपना खजाना है।
जहां की माटी कण - कण बहती
ये सबका विश्वास है।
मेवाड़ दुर्ग का सक्षम योद्धा
बप्पा का इतिहास है।"
एक बार एक बालक गाय का दूध निकाल कर शिव को चढ़ा रहा था शिव की वंदना कर रहा था अचानक वहां से कोई ऋषि गुजर रहे थे। उन्होंने देखा कि वह बालक शिव का दूध से अभिषेक कर रहा था उन्होंने उस बालक से कहा एक दिन इस मेवाड़ पर तेरा ही राज होगा क्योंकि तो एक साधारण बालक नहीं है, तेरी कीर्ति गाथा को संपूर्ण विश्व दिखेगा,
इस बालक का नाम था "कालभोज" जिसे सब बप्पा रावल के नाम से जानते थे, हरित ऋषि के आशीर्वाद से बप्पा महादेव के बहुत बड़े भक्त हुए। उनकी धर्म मे इतनी रुचि थी कि जहां भी धर्म पर आघात होते वही पर बप्पा का कहर टूटता और उस जगह को पुनः सनातन में मिला कर भगवा लहराते।
राजस्थान की माटी को ऐसे ही नहीं वीरों की भूमि कहा जाता है इसको इसलिए बलिदान भूमि नहीं कहा जाता है।
इस भूमि में बड़े-बड़े शेर जन्म लेते थे क्योंकि पता नहीं इस माटी मैं ऐसा क्या है जोकि बड़े-बड़े योद्धा यहीं से जन्म लेते हैं क्योंकि यह राजस्थान की भूमि है,
"कितने लाल थे इस माटी के
बस वीर -वीर ही पाया है।
यह उस माटी का जौहर है
जो सबकी जुबां पर आया है।"
इस राजस्थान के माध्यम बप्पा रावल का स्वर्णिम इतिहास सभी जानते हैं यह एक महावीर थे जिनसे कई विदेशी आक्रमणकारी खौफ खाते थे क्योंकि बप्पा रावल की तलवार से शत्रु भी दहल जाता था इनका वास्तविक नाम काल भोजक था। जब ये बीस वर्ष के थे उस समय यहां मेवाड़ में मौर्य वंश के शासक मोरा का शासन था एक दिन इन्होंने छोटी सी सेना लेकर राजा मोरा को ललकार दिया।
बप्पा रावल - हे राजा मोरा इस किले को छोड़कर चले जाओ नहीं तो आपका क्या अंजाम होगा ये तुम भी नहीं जानते हो।
मोरा - तुम तो अभी नहीं युवक हो पहले दूध पीकर आओ।
बप्पा रावल _ यहां के हर छत्रिय ने शेरनी का दूध पिया है
तभी तो हम शेर हैं आ जाओ युद्ध के लिए तभी तो हम तैयार हैं।
अचानक वहां युद्ध का बिगुल बज गया चारों ओर युद्ध ही युद्ध छाया हुआ था मानो रक्त की नदियां बह रही थी लेकिन बप्पा रावल के एक कुशल नेतृत्व ने मोरा की सेना को तितर-बितर कर दिया। बप्पा रावल की सेना ने दुर्ग के फाटक को तोड़ डाला और अंदर घुस गए वहां पर सभी को घेरे डाल लिया गया। यह विजय बप्पा रावल का पहला उद्घोष था।
बप्पा रावल ने मोरा सम्राट को हरा दिया तथा मेवाड़ पर अपना अजय कर लिया।
"तेरी गीत की विजय पताका
गाए मेवाड़ अपना गीत।
तुझसे जुड़ा है इस मानव का
अनुपम है जो यह संगीत।"
बप्पा रावल ने संपूर्ण मेवाड़ में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। अचानक एक खबर आई की मोहम्मद बिन कासिम सिंध के शासक दुला शाह को धोखे से मार दिया लेकिन अब करा भी क्या जाए, बप्पा रावल ने सोच किया कि मैं इन अरबीयों को अपनी मातृभूमि से खदेड़ दूंगा।
बप्पा रावल ने अपनी सैनिकों से कहा कि आज वह दिन आ गया है जब अभी भूमिका किस प्रकार निभाना है माता धरती को इस मलेछ सेना को पराजित करना है और इनको दिखा देना है कि हमें किसी ताकत है।
''आज जगा कर दिल में देखो
उमंग भरा है।
लहर- लहर सी नदियों में
तरंग भरा है।
चमका दो आज की तलवारे
शत्रु खड़ा है।
बस दिल में देखो आज तुम्हारे
जिद पर अड़ा है।
शत्रु सेना को आज हरा दो
भगवा लहरा है।"
युद्ध की हुंकार को देखकर मलेछ सेना थर - थर कापने लगी।
मोहम्मद बिन कासिम को बप्पा रावल ने बुरी तरह परास्त कर दिया और सिंध प्रांत से दूर खदेड़ दिया, तथा वहां से सभी भारतवासी की लोगों को आजाद कराया।
बप्पा रावल उनपर रुद्र बनके टूटे और मुहम्मद कासिम को उस समय के ख़लीफ़ा ने वापस बुलाया, बुलाया क्या मुहम्मद क़ासिम को भागना पड़ा।
मगर इस्लाम के शासकों को चैन कहाँ था उन्होंने दो तरफ से मेवाड़ पर हमला बोला। अबकी बार बप्पा रावल ने कहर मचा दिया उन्होंने ऐसी मारकाट मचाई की इस्लाम के इन आक्रमणकारियों ने इतिहास में भी कभी नही सुनी थी। दूसरी तरफ से गुर्जर प्रतिहार वंश के नागभट्ट प्रथम ने उनको दक्षिण पश्चिमी राजस्थान की तरफ से दौड़ा दौड़ा कर मारा।
फिर बप्पा रावल ने एक ऐसा काम किया कि अगले चार सौ साल तक अरब और इस्लामी शासकों ने भारत की तरफ मुंह उठाकर भी नही देखा। उन्होंने छोटे मोटे सरदारों और नागभट्ट प्रथम व विक्रमादित्य द्वितीय के साथ मिलकर एक हिन्दू सेना का निर्माण किया। इस सेना ने अरब के अल हकम बिन अलावा, तामिम बिन जैद अल उतबी, अब्दुलरहमान अल मूरी की ऐसी खटिया खड़ी की कि इस्लामी शासक बप्पा रावल के नाम से भी थर थर कांपने लगे।
बप्पा यही नही रुके उन्होंने गजनी के शासक सलीम को बुरी तरह हराया, और अपने भतीजे को वहां की गद्दी पर बिठा आये। अरबी शासकों ने गजवा- ए - हिन्द के सपने देखे थे लेकिन बप्पा रावल में उनके सपने चूर-चूर कर दिए।
''"इसकी रक्षा से बना था
ललकार हो ,यलगार हो।
थम चुकी थी यह जमी भी
दरकार हो ,तकरार हो।"
उस समय भारी विदेशी आक्रमणकारी बप्पा के नाम से थर - थर कापते थे। उनका इतना दहशत था कि वहां के मुस्लिम शासकों ने अपनी पुत्रीयों का विवाह कर दिया ताकि हम चैन से रह पाए, संपूर्ण मेवाड़ तथा सिंध प्रांत बहुत दूर तक एक ही छाप था वो है बप्पा रावल इतिहास के योद्धा इन छिपे हुए पन्नों से यह कह रहे हैं कि तुम कैसे जाग उठो और कह दो कि वफा रावल अभी जिंदा है।
चैन यही पर आया है ,ऐसा कहना तुम बतलाओ।
पृष्ठ परखने आया हूं, वैसा कहना तुम जतलाओ।
बप्पा रावल सबकी जुबानी क्या दरिया ,है क्या था पानी।
सबकी जुबानी अपनी जवानी भाग्यविधाता सदियों पुरानी।
लगभग ९७ वर्ष की आयु में उन्होंने इस संसार को त्याग दिया। उनके चलाये सिक्के पर नन्दी व शिवलिंग का चित्र था और त्रिशूल के साथ पुरुष आकृति। आज भी भारत के समग्र इतिहास में यदि हम खोजे तो ऐसा कोई योद्धा नही मिलता जिसने इस्लाम शासकों को इस तरह घुटनों के बल लाया हो कि वे कई साल तक उस बप्पा का अपना सिक्का चलता था,
जो कभी महादेव के भक्त हुआ करते थे जिनकी कीर्ति कि आभा चारों तरफ थी।
"पूरब से लेकर पश्चिम तक
उत्तर से लेकर दक्षिण तक।
बप्पा रावल की विजय पताका
सिंधु से लेकर दक्कन तक।"
बप्पा रावल के विचारों का आदर्श भले ही छुप गया है लेकिन इतिहास ने पृष्ठों को खोलकर उसको और हरा कर दिया है कहते हैं कि जो स्थान अभी पाकिस्तान में है उसका नाम रावलपिंडी है वह स्थान बप्पा रावल के नाम पर बना है।