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चल निकला हैं गांडीवधारी
नर अर्जुन जो जाएगा।
निर्णय करके आया हैं वो
नारायण को पाएगा।

ढूंढ रहे हैं कान्हाँ जी को
जो सब बंधन से आगे हैं।
द्रवित हैं जो योग निद्रा में
वो सोए हैं हम जगे हैं।
विराट नगर के तीव्र गति से
अपना अश्व दौड़ाएगा ।
निर्णय करके आया हैं वो
नारायण को पाएगा।

पर पहले से ही बैठा है जो
पार्थ से आगे डटकर।
निःस्वार्थ नहीं पर स्वार्थ है उसका
अर्जुन से आगे आकर।
पर बुद्धि परीक्षा तेरी है
मन को कैसे जो जगाएगा?
निर्णय करके आया हैं वो
नारायण को पाएगा।

जीवन में हो कैसी परीक्षा
जैसी भी हो तेरी इच्छा।
हद से आगे निकल जाए
किसका करेगा पीछा?
तेरी प्रबल इच्छा को सुनकर
प्रकाश से ही प्रकाश छा जाएगा।
निर्णय करके आया हैं वो
नारायण को पाएगा।

अलग-अलग है सजग- सजग हैं
कुछ कहना हैं, कुछ सुनना हैं।
कौन मित्र हैं? कौन शत्रु हैं?
कुछ हटना, कुछ चुनना हैं।
मत्स्य की आंखें भेद दिया था
ऐसा ही करके दिखाएगा।
निर्णय करके आया हैं वो
नारायण को पाएगा।

युद्ध क्षेत्र के बड़े रथी हैं
अतिरथि, कई महारथी हैं।
कुरुक्षेत्र का कण-कण बोले
शूरवीर के सारथी हैं।
स्वाति नक्षत्र का बूँद गिरे जो
मोती बनकर आएगा।
निर्णय करके आया हैं वो
नारायण को पाएगा।

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