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इन झरनों का पानी बनकर
श्वेत सा आंचल मैं बन जाऊं।
जनमानस को मोहित करके
उनके दिलों को आज जगाऊं।

आती है नवरस की होली
सात रंग की ये रंगोली।
नए-नए से रंग बिखेरे
नये - नये नायक की टोली।
उस राधा का मोहन बनकर
प्रेम नदी के तरंगों में।
उस होली का नायक बनकर
घुल जाऊं इन रंगों में।

जगमग जगमग दीपक जलकर
कितने सुंदर जलते हैं।
जहां तन भी उज्जवल हो जाता है
मन भी उज्जवल होता है।
मैं उसी रूप का थाल सजाकर
आरत करूं जो थाली से।
उस रोशन को रोशन करके
सज जाऊं दीवाली से।

शब्द सुरों की यही सादगी
नए तराने भरती है।
साज नया, अल्फाज नया है
झिलमिल - झिलमिल करती है।
मैं उन्हीं स्वरों का कोयल बनकर
सबको जगाऊं डाली से।
लोगों का मन ऐसे खुश हो
स्वागत करें जो ताली से।

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