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था तब मेरा बचपन
देखा मैने उम्र थी
उसकी पचपन
धुल से अटा,
दिवार से सटा
था खाली पेट,
बैठा था सिर टेक
उसे थी उम्मीद,
खाना था करीब
दयालु कोई आयेगा, भुख उसकी मिटायेगा
और न था कोई चारा,
अपाहिज था वह बेचारा
वक्त बहुत गुजर गया
ध्यान कीसी का न उधर गया
तभी मेम एक आयी
कुत्ते को थी गोद में लायी
मेम को देख आस उसकी जगी
पेट में थी आग लगी
मेम ने मुँह से आग छोड़ी
गुस्से से नाक सिकोड़ी
खड़ी होगी कहाँ हमारी गाड़ी
हटाओ यह भिखारी
दुकानदार ने उसे देखा
फिर पत्थर एक फेंका
भिखारी को सड़क से हटाया
कुत्ते को टेबल पर बीठाया
ये था कलयुग का कमाल
आदमी का कुत्ते से बुरा हाल
मेम घर गयी रात गुज़र गयी
सुब्ह जब तक हुई अज़ान
भिखारी के निकल चुके थे प्राण
भिखारी के निकल चुके थे प्राण...