आज फिर एक स्त्री बनी दहेज प्रथा का शिकार
चूड़ियों से सजे नाजुक हाथों पर दिन रात हो रहा घनघोर अत्याचार
आज फिर एक पिता कुचला गया दहेज के पैरों तले
उसकी लाडली अधमरी किसी कोने में रो रही , लगाकर खुदको गले
पैसों के तराजू पर तोलकर, जब पिता ने किया उसके जीवन का सौदा
लालची भेड़ियों की भूख फिर भी ना मिटी
और ,और की चाह में उन्होंने मुरझा दिया उसके जीवन का पौधा
कभी जो मेहंदी, जेवर से सजती थी
अब उसके कानों में बस सास ससुर की ज़हरीली गालियां बजती थी
उसके बदन के हिस्से हिस्से पर नीले चोटों के निशान है
दहेज के नाम पर खुदके पिता ने किया उसका अपमान है
शादी के नाम पर हुआ उसका जबरदस्ती व्यापार है
खुद उसे देवी मां का दर्जा भी दिया
फिर क्यों उसे अग्नि की भेंट चढ़ाते लगातार है
जिस पुत्री को नाजों से पाला, रखा जिस कली को हर कांटे से दूर
सौंपा था जिस वर को रक्षक समझके , वह निकला पैसों का भूखा और बेहद क्रूर
महंगी गाड़ी , घर की भूख उसके सर पर सवार
पहले धमकी दी दहेज लाओ, फिर किया उस रावण ने शरीर पर जोर जोर से वार
कब तक सहती वह अपने पिता की बरबादी
जीवन भर की जमा पूंजी लुट गई एक बार में
ससुराल की मांगें तो बड़ती ही गई, ना हुई काम या आधी
दहजे ने घोंटा गला उसके मान सम्मान का
वह पीती रही हर दिन कड़वा घूंट अपमान का
आखिर उसने मान ही ली हार
दहेज के पंजों में उलझकर स्वयं तोड़ दी अपने सांसों की तार
जिसकी डोली उठी कल धूम धाम से
आज उसी की अर्थी उठने को है तैयार
आज डरता हर पिता दहेज के नाम से
आखिर कितनी और बेटियां खोएगा यह समाज बार बार
लड़केवालों की उपहार की मांग सुनकर हर पिता डर के मारे जोर जोर से हांपे
हर मां अब पुत्री को जन्म देने से कांपे