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स्त्री को देवी मां का रूप कहा जाता है। कहते हैं की जिस घर में स्त्रीयों के कदम पड़ते हैं वहां सदा सुख ,संपत्ति का वास रहता है। स्त्री के अनेक रूप होते हैं। वह मां, बहन, बेटी, बहु, पत्नी, आदि के किरदार अपने जीवन में निभाती है। इनमें से सबसे पवित्र और मासूम किरदार होता है बेटी का। बेटी का घर आना बेहद शुभ माना जाता है। पर जहां एक तरफ बेटियों की पूजा की जाती है दूसरी तरफ उसी पूजनीय बेटी को बेटे के चाह में कोख में ही मौत के घाट उतारा जाता है। इस कुकर्म को कन्या भ्रूण हत्या का नाम दिया गया है।
कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ यह है की बच्चे के पैदा होने से पहले अल्ट्रासाउंड स्कैन जैसे टेक्नोलॉजी के द्वारा उसके लिंग की पहचान करना और अगर यह पाया गया कि वह लड़की है तो अबॉर्शन के द्वारा मां की कोख में ही उसकी हत्या कर देना। कन्या भ्रूण हत्या भारत का एक शर्मनाक सत्य है। भारत में कन्या भ्रूण हत्या और भ्रूण के लिंग की पहचान करना बिलकुल गैरकानूनी है। 1994 के पी. एन. डी. टी एक्ट के अनुसार, अगर कोई भी कन्या भ्रूण हत्या करता हुआ पाया गया , तो वह अपराधी माना जाएगा। उसे तीन साल तक की सजा हो सकती है और साथ में पचास हजार रुपए का जुर्माना भी देना पड़ सकता है।अनुच्छेद 21 के तहत हमारे पवित्र संविधान द्वारा प्रधान किया गया जीवन का अधिकार एक अजन्मे कन्या भ्रूण पर भी लागू होता है। कन्या भ्रूण हत्या में हो रही वृद्धि के कारण , आज कल हमारे समाज में लिंगानुपात में कमी, महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि आदि दिखाई दे रही है।
परंतु फिर भी कन्या भ्रूण हत्या नाम की यह सामाजिक बुराई आज भी बरकरार है। आज कल सबको बेटे की चाह है क्योंकि यह माना जाता है की बेटी पराया धन होती है और लड़के बुढ़ापे का सहारा होते हैं। पर ये लोग यह भूल जाते हैं की इन बेटों को इस दुनिया में लाने वाली भी किसी की बेटी होती है , एक औरत होती है। भारत में कन्या भ्रूण हत्या सदियों से चली आ रही है। इसकी जड़ें हमारे समाज में बहुत गहराई तक फैल चुकी हैं। यह बुराई हर वर्ग, जाती, धर्म के लोगों के दिमाग में घर कर चुकी है।दशकीय जनगणना के अनुसार, भारत का लिंग अनुपात 107.48 है। इसका अर्थ यह है की 2019 में प्रति 100 महिलाओं पर 107.48 पुरुष हैं। इसलिए भारत में प्रति 1000 पुरुषों पर 930 महिलाएं हैं।
बेटियों की शादी में ससुराल वाले उपहार के नाम पर दहेज की मांग करते हैं जिससे माता पिता के सर पर बहुत बड़ा बोझ आ जाता है। बेटी के जन्म से ही पिता दहेज की तैयारी में जुट जाता है। इस कारण वह सर से पैर तक कर्जे में डूब जाता है। जीवन भर की कमाई बेटी की शादी की तैयारी और दहेज में खर्च हो जाती है।
लोगों के मन में यह गलत धारणा है की मर्द औरत से हर क्षेत्र में आगे है। औरत को मर्द से कमजोर माना जाता है। समाज में औरतों का दर्जा मर्दों से नीचे माना जाता है। लोगों को यह लगता है की बेटे जीवनभर माता पिता के साथ रहेंगे। वे जिंदगी भर पैसे कमाकर अपने माता पिता का ख्याल रखेंगे। बेटियां शादी करके दूसरे घर चली जाएंगी। यह माना जाता हैं की बेटे परिवार के नाम को आगे बढ़ाते हैं जबकि बेटियां अपने पति के परिवार के नाम को आगे बढ़ाती हैं। यह भी माना जाता है की लड़के शादी करके दुल्हन के साथ दहेज लाएंगे जबकि लड़कियां शादी करके घर से दहेज ले जाएंगी।
भारत में 1990 में चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति के कारण लिंग परीक्षण के अनेक मार्ग जन्मे लेने लगे जिससे कन्या भ्रूण हत्या की शुरुवात हुई। परंतु इससे पहले भी बेटियों को बेदर्दी से उनके जन्म के तुरंत बाद मारा जाता था। अल्ट्रासाउंड जैसे लिंग पहचान के मार्ग से यह पता चल जाता है की किसी औरत की कोख में बेटा पल रहा है या फिर बेटी। और अबॉर्शन के द्वारा जन्म से पहली ही कन्या भ्रूण के जीवन को समापत किया जाता है।
समाज में निरक्षरता के कारण कई लोगों को सही जानकारी नहीं मिल पाती है और वे पुराने ज़माने के ख्यालों में फंसे रहते हैं । और गरीबी के कारण माता पिता अपनी बेटियों का ध्यान नहीं रख पाते। वे बेटियों को पड़ा लिखा नहीं पाते। कई लोग आज भी बेटी बचाओ , बेटी पढ़ाओ योजना के बारे में नहीं जानते। यह योजना भ्रूण हत्या जैसे महिलाओं के खिलाफ होने वाली बुराइयों को खत्म करने की कोशिश करती है।
ससुराल में आते ही नई दुल्हन पर परिवार के वंश को आगे बड़ाने का दबाव डाला जाता है। पुराने ज़माने के लोगों के मन में बेटों का मोह होता है। उनके अनुसार बेटों का पैदा होना समाज में गर्व और प्रतिष्ठा की बात होती है। बेटों का पैदा होना अच्छी किस्मत मानी जाती है और लड़कियों का पैदा होने बुरी किस्मत।
आज कल हमारी बेटियां कहीं भी सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि कई महिलाएं अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं। दहेज ना मिलने पर औरत के ससुराल वाले उस पर ज़ुल्म करते हैं और इस तरह वह मार पीट और घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। रात को बेटियां अकेली सड़क तक पर नहीं चल सकती। कभी कोई लड़की किसी लड़के का प्रेम प्रस्ताव अस्वीकार करती है तो लड़का अपमानित महसून करने के कारण उससे बदला लेता है। यहां तक की वो अपने गुस्से की आग में लड़की को तेजाब से जला देता है। और कई पापी तो लड़कियों का बलात्कार तक करते हैं। कन्या भ्रूण हत्या महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसाओं में शामिल है। औरतों को घूरना, उन्हें छेड़ना, गंदी नीयत से चूना या चूने का प्रयास करना भी महिलाओं के प्रति हो रहे हिंसा का एक हिस्सा है। कई किस्से ऐसे हैं जहां अगर कोई लड़की अपने जाती या फिर धर्म के बाहर जाकर विवाह करती है तो उसका परिवार खुद उसकी हत्या कर देता है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी बेटी ने उनके सम्मान को ठेस पहुंचाया है। ऐसी घटनाओं के कारण माता पिता बेटियों को इस दुनिया में लाने से डरते हैं।
भ्रूण हत्या एक अपराध है पर फिर भी कई भ्रष्टाचारी डॉक्टर इस गैरकानूनी कर्म का हिस्सा बनते हैं। पैसे के चक्कर में कई डॉक्टर लिंग की पहचान करने और अबॉर्शन करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास कम आर्थिक संभावनाएँ होती हैं। आज भी कई क्षेत्रों में औरतों की पगार मर्दों से कम होती हैं।दुनिया भर में, पुरुषों की तुलना में कम महिलाएं वेतनभोगी रोजगार में हैं, कामकाजी उम्र की केवल 50 प्रतिशत महिलाएं ही श्रम बल में भाग लेती हैं। इसका उनके समग्र सशक्तिकरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मर्दों की इस दुनिया में औरतें बड़ी मुश्किल से अपना स्थान बना पाती हैं।
यह योजना बाल लिंगानुपात में सुधार और लड़कियों के मौलिक अधिकारों में बदलाव लाने के लिए 2015 में शुरू की गई थी। यह योजना कन्या भ्रूण हत्या और महिलाओं के प्रति हो रहे भेदभावों से लड़ने के लिए शुरू की गई थी।
यह योजना बचपन से ही लड़कों और लड़कियों में समानता को बढ़ावा देने और यह सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई थी कि लड़कियों को हर अधिकार मिले। इस योजना के अनुसार इस बात का ध्यान रखा जाता है की हर लड़की को पढ़ाई का हक मिल सकें और वह हमेशा सुरक्षित रहें। यह योजना लड़कियों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करती है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना यह सुनिश्चित करती है कि माता-पिता अपनी बेटी की उच्च शिक्षा और शादी के लिए धन बचा सकें।
हर बेटी अनमोल होती है। हर बेटी 100 बेटों के बराबर होती है। बेटे की मोह के चक्कर में एक अनमोल जान की बली न चढ़ाइए। हमारी बेटियां बेटों से कम नहीं हैं। आज कल हर क्षेत्र में लड़कियां बहुत तरक्की करने लगी हैं। वह अपनी उड़ान भरने लगी हैं। इस उड़ान को अपने पैरों तले मत कुचलिए। यह समाज तभी ठीक से चल सकता है जब लड़कियों और लड़कों के बीच संतुलन हो। हर बेटी को गले लगाकर इस दुनिया में उसका स्वागत करें।