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समाज शब्द की अगर परिभाषा जाननी हो तो इससे संबंधित बहुत सारी किताबें और विकिपीडिया जैसी असीमित साइट्स पर हमें अनगिनत परिभाषाएं देखने को मिल जाएंगी। परंतु हमारा धेय्य सिर्फ इसकी परिभाषा तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। समाज हर इंसान का अस्तित्व है, हर इंसान की पहचान समाज से की जाती है इसलिए इस समाज को गहराई से समझना प्रत्येक इंसान का उत्तरदायित्व होना चाहिए।
समाज को अगर समझने की कोशिश की जाए तो समाज का अर्थ होगा एक ऐसा समूह जिसमें सारे वर्ग और वर्णों के लोग रहते हैं। समाज के दो स्वरूप: सभ्य समाज और असभ्य समाज हो सकते हैं। सभ्य और असभ्य का अर्थ हम भली भांति जानते हैं, अब हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि हम किस समाज का हिस्सा होना चाहते हैं। अगर हम और अधिक सोचें तो क्या हमारे अकेले की हिस्सेदारी इस समाज के स्वरूप को बदलने मैं सहायक हो सकती है या फिर बंटवारे को ही समाप्त कर दिया जाए। सिर्फ एक समाज की रचना हो वह भी सभ्य समाज की तो हमारे देश की तस्वीर बदल सकती है।
भारत में विभिन्न वर्गों और वर्णों का समायोजन है। यह वर्ण और वर्ग व्यवस्थाएं प्राचीन काल में मनुष्य की योग्यता के आधार पर की गई थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया कुछ लालची और क्रूर लोगों ने इस व्यवस्था का उपयोग अपने फायदे के लिए करना आरंभ कर दिया। उनकी इन हरकतों की वजह से समाज में असमानता फैलने लगी, गरीब और मजबूर लोगों पर अन्याय और अत्याचार बढ़ गए। समाज पहले से ही तीन वर्गों (उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग, निम्न वर्ग) में बंटा हुआ था। उच्च वर्ग अन्य दोनों वर्गों पर अपना प्रभुत्व जमाने लगा, निम्न वर्ग उच्च और मध्यम दोनों वर्गों के अधीन हो गया। निम्न वर्ग का अधिक शोषण होने के कारण यह आर्थिक, मानसिक और शारीरिक हर तरह से कमजोर पड़ गया। यही कारण है कि इन विकारों के चलते आज तक भी इन असमानताओं ने समाज को घेरा हुआ है। हाँ हम यह कह सकते हैं कि अतीत अपेक्षा वर्तमान मैं कुछ बदलाव अवश्य हुए हैं, परंतु अभी तक भी समाज की तस्वीर पूरी तरीके से बदली चुकी है यह कहना उचित नहीं होगा।
जहां एक तरफ भारत मंगल और चाँद जैसे दूसरे ग्रहों पर विजय पा चुका है। भारत के लिए यह बहुत ही गौरवपूर्ण बात है। परंतु इस सच्चाई को भी नकारा नहीं जा सकता कि इस देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाला गरीब भर पेट भोजन नहीं कर पा रहा है, जहां एक और देश चाँद पर सफलतापूर्वक विजयी होने की खुशी मना रहा है, वहीं कोई गरीब दो वक्त की रोटी पाने के लिए जद्दो जहद् कर रहा है, आंखों से आंसू बहा रहा है। जहां एक तरफ भारत का उच्च वर्ग दूसरे ग्रहों पर जमीन खरीदने में सक्षम है, वहीं भारत का गरीब सड़कों पर सो कर सर्दी, गर्मी, बरसात की मार सहते हुए अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। क्या यह असमानता नहीं है? क्या यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं है?
“क्या अधिकार नहीं है उस गरीब को भरपेट भोजन पाने का
सर्दी गर्मी बारिश से बचने के लिए किसी आशियाने का”।
जहां संविधान में सबके लिए समान अधिकार है वही गरीब सामान्य अधिकारों से भी वंचित है। आजादी के इतने सालों बाद भी, जबकि भारत कई क्षेत्रों में सफलता हासिल कर चुका है। शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी खासी बढ़ोतरी कर चुका है। अगर आंकड़ों की माने तो आजादी के समय भारत की साक्षरता दर 18% थी, वर्तमान में साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है। इन क्षेत्रों में विकसित होने के बाद भी गरीब की हालत मैं कोई खास सुधार नहीं हुआ। एक गरीब महीने में इतना नहीं कमा पाता जितना एक अमीर इंसान किसी शानदार होटल में एक समय के भजन के लिए पैसा खर्च कर देता है। इन सब असमानताओं और भेदभाव के कारण समाज का सामूहिक विकास न होकर सिर्फ अमीर वर्ग तक ही सीमित रह गया है। अत्यधिक संपन्नता होने के कारण अमीर इंसान समाज में मान सम्मान, उच्च शिक्षा आदि पाने का हकदार बनता है। दूसरी तरफ धन के अभाव के कारण गरीब इंसान प्रतिभावान होते हुए भी उच्च शिक्षा उच्च पद और समाज में सम्मान पाने में कहीं ना कहीं पीछे रह जाता है। यही कारण होता है कि गरीब अपनी स्थिति से और नीचे गिरता चला जाता है और अमीर अमीरी के सागर में डूबता चला जाता है। यही कारण है की असमानता समाज को घेरती चली जा रही है। स्वयं गरीब और गरीबी को जन्म देने वाले लोग इस बात को मानने से हिचकिचाते नहीं हैं कि गरीबी ही गरीब इंसान की तकदीर है। इन सब बातों को सोचते हुए, इन हालातो को देखते हुए मन में कुछ प्रश्न उठते हैं।
इस तरह के कई सवाल मन को बेचैन कर देते हैं हर तरफ एक शोर गूंजने लगता है, कि ऐसा क्यों है, यह असमानता क्यों है? कभी-कभी मन खुद से ही उत्तर भी देने लग जाता है की लालच और ईर्ष्या जैसी बुरी भावनाएं इस असमानता को जन्म देती हैं।
आज हम देखते हैं कि इंसान का लालच बढ़ता ही चला जा रहा है चाहे वह सत्ताधारी नेता हो या सरकारी अधिकारी या फिर कोई उद्योगपति। यह सब लालच रूपी तंत्र के अधीन होते चले जा रहे हैं, इस बढ़ते लालच के कारण यह लोग अपने अधीन काम कर रहे लोगों का शोषण कर रहे हैं। एक दूसरे को नीचे गिरा कर आगे बढ़ाने में लोगों को आनंद की अनुभूति हो रही है। लोगों के अंदर सद्भावना लुप्त होती चली जा रही है।
समाज में फैल रही इस तरह की असमानता, इस बुराई को रोकने के लिए कुछ किया जा सकता है, क्या हमें कोई कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। हम चाहे तो समाज में बदलाव लाया जा सकता है। सरकार चाहे तो समाज के उसे गरीब तपके की तरफ ध्यान केंद्रित कर सकती है, गरीब का शोषण होने से बचा सकती है।
मनुष्य शरीर को जीवित रखने के लिए जिस तरह से सांसों का चलते रहना आवश्यक है, उसी प्रकार सभ्य समाज को बनाए रखने के लिए मनुष्य में मानवता और सद्भावना का होना अति आवश्यक है। सद्भावना इंसान के विचारों को शुद्ध करती है, विचार शुद्ध होंगे तो स्वाभाविक है कि मनुष्य के कर्म भी शुद्ध होंगे। शुद्ध कर्म करने वाला मनुष्य लालच और ईर्ष्या जैसे अवगुणों से परे रहेगा। जहां लालच नहीं होगा वहां सदाचार होने के कारण दुराचार, भ्रष्टाचार जैसे विकार नहीं पनप पाएंगे। लेकिन यह तब संभव होगा जब इन सद्गुणों को हम अपने जीवन में उतार लेंगे। इसके लिए हर माता-पिता को अपने जीवन में सदाचार को अपनाते हुए अपने बच्चों को भी इन गुणों को अपनाने की शिक्षा देनी चाहिए। बच्चों को स्कूल कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ सदाचार का भी ज्ञान देना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो धीरे-धीरे समाज में सदाचार बढ़ने लगेगा, इंसान के अंदर से बुराई समाप्त होने लगेगी हर इंसान एक दूसरे को सम्मान देने लगेगा। धीरे-धीरे असमानता, समानता में बदलने की रूपरेखा तैयार होने लगेगी, जिसके कारण भारत के हर पहलू का विकास तेजी से हो ऐसा संभव हो पाएगा।