वेश्यावृत्ति की शुरुआत लगभग 2400 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया की सुमेरियन सभ्यता में हुई थी। जहां ऊरूक के मंदिरों में इसे एक कानूनी और सामाजिक प्रथा के रूप में अपनाया गया था। यह सभ्यता के साथ-साथ विकसित हुई और प्राचीन सभ्यताओं में इसके कई रूप भी देखे गए।
वेश्यावृत्ति को धन या वस्तुओं के बदले यौन संबंधों के रूप में देखा जाता था और यह कभी एक सम्मानित व्यापार, तो कभी एक सामाजिक कलंक के रूप में मौजूद रही।
प्राचीन काल मेसोपोटामिया से लेकर इज़रायल, रोमन साम्राज्य और भारतीय उपमहाद्वीप तक वेश्यावृत्ति का अस्तित्व रहा। भारत में कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी गणिकाओं का उल्लेख मिलता है, जो राज्य के लिए आय का स्रोत थी।
वेश्यावृत्ति ने समय के साथ कई रूप लिए हैं और आज दुनिया के कई देशों में इसे विभिन्न कानूनी दर्जे भी प्राप्त हैं, जहां यह या तो अवैध है या सरकार द्वारा नियंत्रित।
भारत में वेश्यावृत्ति वैदिक काल में देवदासी प्रथा से शुरू होकर मुगल काल की तवायफों और फिर ब्रिटिश शासन के दौरान हुए यौन शोषण तक फैला है। आधुनिक समय में इसे "अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम 1956" के तहत नियंत्रित भी किया गया है। हालांकि इस पेशे में मानव तस्करी एक गंभीर समस्या है और यौनकर्मियों के अधिकारों का संरक्षण एक सतत चुनौती है।
ब्रिटिश शासनकाल में वेश्यावृत्ति को बढ़ावा दिया गया और विनियमित किया गया। "संक्रामक रोग अधिनियम 1864" के तहत इस पेशे को नियंत्रण में रखने का प्रयास किया गया।
पारंपरिक उद्योगों पर प्रतिबंध के कारण कई समुदाय आजीविका के लिए वेश्यावृत्ति पर निर्भर हो गए।
भारत में किसी भी शहर में वेश्यावृत्ति का सटीक प्रतिशत नहीं है। लेकिन कुछ शहरों में वेश्यावृत्ति के प्रमुख केंद्र हैं, जिनमें कोलकाता का सोनागाछी (एशिया का सबसे बड़ा रेड लाइट क्षेत्र), मुंबई का कमाठीपुरा और पुणे का बुधवार पेठ शामिल हैं।
पश्चिम बंगाल में भारत की सबसे ज्यादा महिलाएं यौनकर्मी (FSW) हैं, जो देश की कुल अनुमानित 1.82 मिलियन FSW का लगभग 25% हिस्सा हैं।
यह एक अवैध और अनौपचारिक पेशा है।
भारत में वेश्याओं की संख्या 30 लाख से 1 करोड़ के बीच है।
भारत में वेश्यावृत्ति कानूनी है, लेकिन इससे संबंधित कई गतिविधियां—जिनमें वेश्यावृत्ति, कर्ब क्रॉलिंग, वेश्यालय का मालिक होना या उसका प्रबंधन करना, किसी होटल में वेश्यावृत्ति, बाल वेश्यावृत्ति, दलाली या पैडरिंग—अवैध हैं।
भारत को व्यापक रूप से दुनिया के सबसे बड़े वाणिज्यिक सेक्स उद्योग में से एक माना जाता है। यह सेक्स पर्यटकों का एक वैश्विक केंद्र बनकर उभरा है, जो अमीर देशों से सेक्स पर्यटकों को आकर्षित करता है। भारत में सेक्स उद्योग बहु-अरब डॉलर का है और सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है।
चीन, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे अधिक वेश्याओं वाले देश हैं।
मुंबई के कमाठीपुरा वेश्यालय क्षेत्र को ही हाइलाइट करके साल 2022 में संजय लीला भंसाली द्वारा एक पिक्चर बनाई गई थी, जिसका नाम था गंगुबाई काठियावाड़ी। जिसमें गंगुबाई के चरित्र को दमदार और हक के लिए लड़ने वाला दर्शाया गया है। यह पिक्चर जैदी की किताब के एक अध्याय पर आधारित है।
गंगुबाई का चरित्र वैसे तो अभिनेत्री आलिया भट्ट ने निभाया है, पर वास्तव में गंगुबाई 1960 दशक की एक सामाजिक कार्यकर्ता, वेश्या और मुंबई के कमाठीपुरा इलाके की एक वेश्यालय की मैडम थी, जिनका असली नाम गंगा हरजीवनदास था। उन्होंने यौनकर्मियों के अधिकारों के लिए काम किया और वेश्यावृत्ति को वैध बनाने का प्रयास किया।
इनका जन्म गुजरात के काठियावाड़ में एक सम्पन्न परिवार में हुआ, लेकिन प्यार में धोखा खाने के बाद उन्हें मुंबई के एक वेश्यालय में बेच दिया गया।
इन्होंने वेश्यावृत्ति के दौरान 4 बच्चों को गोद लिया था। इन्होंने अंडरवर्ल्ड के साथ संबंध के कारण क्षेत्र में एक शक्तिशाली प्रभाव बनाया।
देह व्यापार पूरी दुनिया में आज भी महिलाओं की दैहिक स्वतंत्रता पर कलंक है। भारत जैसे देशों में जहां स्त्री को पूज्य माना जाता है, वहां भी महिला देह व्यापार जैसे घिनौने व्यवसाय में उतरने को मजबूर है।
हालांकि 1956 में PITA कानून के तहत वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता दी गई, पर 1986 में इसमें संशोधन करके कई शर्तें जोड़ी गईं, जिसमें सार्वजनिक यौन प्रक्रियाओं को अपराध माना गया। यहां तक कि इसमें सजा का प्रावधान भी रखा गया।
देश के कुछ प्रमुख रेड लाइट क्षेत्र:
पुणे का बुधवार पेठ – यहां बड़ी संख्या में नेपाली लड़कियां देह व्यापार में संलिप्त हैं।
महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर के इतवारी इलाके में गंगा-जमुना क्षेत्र।
ग्वालियर, मध्यप्रदेश का रेशमपुरा क्षेत्र – यहां देह व्यापार के लिए विदेशी लड़कियों के साथ मॉडल्स और कॉलेज गर्ल्स भी शामिल हैं।
इलाहाबाद का मीरगंज क्षेत्र – जहां पुराने रईस जमींदार मुजरा देखने आते थे।
मुजफ्फरनगर, शिवदासपुर वाराणसी, मेरठ का कबाड़ी बाजार और जीबी रोड दिल्ली।
वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए कानूनी उपाय, जागरूक अभियान, शिक्षा और आजीविका के अवसर प्रदान करना और सामाजिक कलंक को कम करना आवश्यक है।
भारत में PITA एक्ट से आशय "अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम 1956" से है, जिसे 1986 में संशोधित किया गया था।
धारा 3 – वेश्यालय चलाने या वेश्यावृत्ति के लिए परिसर के उपयोग की अनुमति देने पर दंड।
धारा 4 – वेश्यावृत्ति से प्राप्त कमाई पर जीवन यापन करने पर दंड।
धारा 5 – वेश्यावृत्ति के लिए किसी व्यक्ति को प्राप्त करने या ले जाने पर दंड।
कभी किसी ने भी समझने की कोशिश की है कि एक आम सी दिखने वाली महिला या लड़की इस पेशे में कैसे आ जाती है?
मुझे जितना लगता है, अपनी मर्जी से 100 में 90% महिलाएं या लड़कियां इसमें नहीं आती होंगी।
उनकी कोई मजबूरी रहती होगी, जैसे कि आर्थिक समस्या।
और कुछ तो धोखे का शिकार होती हैं, उस वजह से इस दलदल में फंस जाती हैं और निकल नहीं पाती ताउम्र।
और समय बीतने के साथ इस माहौल की आदी हो जाती हैं और इस पेशे को ही अपने आजीविका का साधन समझ लेती हैं।
और कई पीढ़ियां इसी तरह अपना जीवन यापन कर लेती हैं।
वेश्यावृत्ति को जड़ से तो फिलहाल देश या विदेशों से समाप्त नहीं कर सकते।
फिर भी, अगर जो नारी जाति इसमें लिप्त है, अगर उन्हें अन्य तरह के आजीविका के साधन उपलब्ध कराए जाएं, तो वो इस मजबूरी के व्यापार से कोसों दूरी बना सकती हैं और अपना जीवन यापन मान-सम्मान के साथ कर सकती हैं।
मेरा इस विषय पर लिखने का आशय यह था कि
इंसान की सोच कलुषित हो सकती है, दिमागी दायरा विचार का संकीर्ण हो सकता है।
पर अगर हम चाहें तो कीचड़ में भी कमल खिला सकते हैं।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस व्यापार में जितने भी पुरुष वर्ग शामिल होते आ रहे हैं, वो अच्छे-खासे सम्मानित और नामी खानदान से होते हैं।
फिर दोष आखिर उस महिला जाति का क्यों?
मेरा कहने का मतलब है — ताली एक हाथ से नहीं बजती।
शरीर का अगर एक अंग खराब होता है तो उसका उपचार किया जाता है।
उसी तरह समाज में व्याप्त बुराई को समाप्त करते हैं, न कि इंसानी वजूद को मिटाते हैं।
सामान्यतः लेखक इस शीर्षक पर लिखना पसंद नहीं करेंगे।
पर अगर बुराई में भी अच्छाई ढूंढी जाए, तो कोई बात है साहब।
मेरी कलम की स्याही से कुछ गलत शब्द गर बिखरे हों कागज की फर्श पर, तो मैं तहेदिल से क्षमायोग्य हूं।
पर मेरी स्याही के रंग सदैव उन तथ्यों की दास्तां को उजागर करते रहेंगे,
जो अन्य लेखक करने से कतराते हैं।
क्योंकि मेरा मकसद समाज के हर वर्ग, हर कमी को एक नया मोड़ देना है।